महफिलों की शान थे पंडित पन्नालाल दियार वाले


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तूफान मेल न्यूज ,भुंतर।
यह जगत परिवर्तनशील है, कथन, सम्भाषण, गायन, नृत्य एवं मनोरंजन उसकी स्वाभाविक प्रक्रिया है। 21वीं सदी के इस तीसरे दशक में गायन, वादन और नृत्य ने अपने प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप में मीडिया का बहुत प्रयोग किया है। आज तो हरेक आदमी अपनी प्रतिभा, अपनी प्रस्तुति और अन्यान्य प्रतियोगिता को सेलफोन या दूसरे संसाधनों से सोशल मीडिया पर गाहे-बगाहे विभिन्न अवसरों पर प्रसारित कर रहा है। यदि हम आज से पांच छह दशक पहले इस संगीत गायन मनोरंजन या ग्रामीण महफ़िलों की बात करें तो एक नाम हमारे जहन में, हमारे मन में और हमारी महफिल में बार बार उजागर होता रहा है, यह नाम है आदरणीय श्रद्धेय पंडित पन्नालाल शर्मा दियार वाले। इनका जन्म 14 नवंबर 1941 को पंडित श्री हरी चंद शर्मा और माता श्रीमती कला देवी के घर हुआ। बचपन से ही बड़े होनहार, कुशाग्र बुद्धि और गायन के प्रति विशेष रुचि रखते थे । इनकी प्रारंभिक शिक्षा राजकीय मिडिल स्कूल श्याह तदुपरांत हाई स्कूल भुंतर में इनकी शिक्षा पूर्ण हुई ।
लेखन और गायन दो अलग-अलग विधाएं हैं । लिखना अभ्यास, संसर्ग या अन्य कर्म विधा से अर्चित की जा सकता है परंतु गायन की प्रवृत्ति जन्मजात मां शारदा की कृपा से संभव हो सकती है । शर्मा जी बिना किसी गुरु के, बिना किसी संगीत की शिक्षा से ही बचपन में ही महफिलों की शान रहे हैं। बीसवीं शताब्दी के सातवें दशक में जिला कुल्लू के किसी भी क्षेत्र में कहीं भी कोई गायन महफिल का आयोजन किया जाता या मेला हो या त्योहार में किसी मंडली को आमंत्रित किया जाता तो दियार गांव की इनकी मंडली को सबसे पहले याद किया जाता था। इनकी गायन शैली बहुत ही विलक्षण सब को भाने वाली थी, श्रोताओं के मन में एक अलग तरह की छाप छोड़ने वाली यह आवाज 7 जून 2023 को गायन करते हुए सदा के लिए विलुप्त हो कर अपने 82 वर्ष की यात्रा पूर्ण करने के बाद उस परमात्मा में विलीन हो गई। इन के दो पुत्र हैं जबकि एक वर्ष पूर्व उनकी पत्नी का भी निधन हो गया था।

ये गायन के क्षेत्र में विलक्षण अंदाज़ के प्रतिभाशाली व्यक्ति तो थे ही इसके अतिरिक्त उनका लेखन में भी विशेष रुझान था,जिस में समाज सुधार,नशा मुक्ति, आध्यात्मिक स्तर के कई भजनों का स्वत सृजन और गायन करते रहे ।उनके 100 के लगभग गीत अलग-अलग स्थानों पर गाए गए हैं या छपवाए गए हैं और लोगों में आज भी सराहे जाते हैं। अपने स्थान से उन्हें विशेष प्रेम था वे लिखा करते थे
“कितना प्यारा कितना सुंदर,
यह गांव दियार है,
जाने को जी नहीं करता,
जो आता यहां एक बार है ।।
पहाड़ों की सुंदरता के बारे में भी अक्सर लिखते थे, चाहे वह मनाली हो चाहे और कोई रमणीय स्थल हो उन पर उनकी लेखनी स्वत ही बढ़िया आकर्षक और स्वच्छंदता से चलती थी। इसके अतिरिक्त लगभग 6 दर्जन कविताएं आज भी प्रकाशन की बात जोह रही हैं।
लेखन कला के अतिरिक्त अभिव्यक्ति की कला भी उनके अंदर कूट-कूट कर भरी हुई थी। राह में चलते हुए कोई भी इच्छित व्यक्ति मिले या कभी जिज्ञासु भावुक मित्र मिले वे अक्सर अपनी कविताओं का व्याख्यान करते हैं और उन्हें उसी स्थान पर अपनी कविता से सराबोर कर देते थे, चाहे वह स्थान कोई चौराहा हो कोई देवस्थल हो या फिर बसों में भी अपनी उपस्थिति उजागर करने में कभी भी कोई कमी नहीं छोड़ते थे। वे भावुकता से गाते थे, आज परमात्मा विष्णु की देवशयनी एकादशी है और इसके दूसरे दिन ही गांव दियार में भगवान शेषनाग और विष्णु संयुक्त देवरथ का निर्माण होता है, इस विशेष दिवस में इस भावुक कलाकार को याद करना हम सभी का अपना एक परम कर्तव्य रहेगा । मृत्यु एक शाश्वत सत्य है इसको नकारा नहीं जा सकता पर उनके द्वारा लिखी गई पंक्तियां, उनके गाए गए गीतों की विभिन्न प्रकार की स्वर लहरियां वर्षों तक इन तन्हाइयों में, इन पहाड़ियों में या उन महफिलों में जिसमें उन्होंने गाया है, लोगों को नचाया है, हमें याद आती रहेंगी। बीसवीं शताब्दी के सातवें और आठवें दशक में उनके साथ उनके ही भतीजे पंडित ज्ञान चंद शर्मा ढोलक पर उनका खासा साथ देते थे और वह बीच-बीच में उनके गायन के साथ ढोलक भी बजाते थे और जब कभी अवसर मिला तो महफिल में एक विशेष अंदाज से नॄत्य भी करते थे उनके नृत्य शैली को भी लोग सराहे बिना नहीं रहते थे। सच उनके गीत, उनका संगीत, उनकी महफिल की शान होना हमारे लिए बहुत बड़े गौरव की बात है और हमारा देव परिवार, हमारा कुल्लुवी समाज इनके प्रति अपनी कृतज्ञता और श्रद्धांजलि अर्पित करता है। वे हमेशा ही हमें याद आते रहेंगे।

लेखक:दयानंद गौतम प्रसिद्ध इतिहासकार एवं लेखक

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