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तूफान मेल न्यूज डेस्क। आज फटेगी धरती और धरती माता प्रकट होकर अपने बालक को स्तनपान करवाएगी। दूध की धारा निकलेगी और ऋषि मार्कंडेय अपनी मां का दूध पियेंगे। यह चमत्कार आज थोड़ी देर बाद जिला कुल्लू व मंडी की सीमा पर नगवाई के सामने मकराहड़ में होने जा रहा है।
देवी-देवताओं की धरती कुल्लू में आज भी दैवीय चमत्कार के साक्षात्कार होते हैं। ऐसा ही एक चमत्कार 14 अप्रैल यानिकि संग्राद के दिन को मकराहड़ में देखने को मिल रहा है। जहां पर धरती से दूध की धार फूट पड़ेगी। हुरला घाटी के देवता मार्कंडेय ऋषि धरती माता के दूध पीने की रस्म को पूरा करेंगे। हजारों की संख्या में श्रद्घालु इस दिव्य नजारे को देखने के लिए उमड़ेंगे। इससे पहले देवता ब्यास और गोमती के नदी के संगम में शाही स्नान भी करेंगे। श्रद्घालु भी देवता के साथ यहां पर आस्था की डुबकी लगाएंगे।
इस देव उत्सव की तैयारी पूरी हो चुकी है। गौर रहे कि देवता मार्कंडेय ऋषि का मोहरा मकराहड़ जिस स्थान पर मिला था। देवता वैसाखी पर्व के दिन आज भी यहां पर जाते हैं। देवता धरती को अपनी माता मानते हैैं। ऐसे में देवता आज भी इस स्थान पर जाकर धरती माता का दूध पीने की रस्म पूरा करते हैं। बताया जाता है कि देवता का रथ धरती माता का दूध पीने के लिए जमीन के साथ छू जाता है, यहां पर दूध पीने की आवाज भी साफ सुनाई पड़ती है। यह कुल्लू घाटी का एकमात्र ऐसा पर्व होता है, जहां पर देवता दूध पीने की रस्म पूरा करते हैं।
देवता के कारदार जीवन प्रकाश, पुजारी मोहित शर्मा, प्रधान पृथ्वी सिंह पाल, सलाहकार बालमुुकंद नेगी, भंडारी राजेंद्र पाल, सचिव इंद्र सिंह ठाकुर, गूर धनदेव शर्मा, सुआरू राम, संजू ने कहा कि 14 अप्रैल को देवता अपने नरोल से निकल कर अपने श्रद्घालुओं को दर्शन दे रहे हैं। सुबह देवता मार्कंडेय ऋषि अपने मंदिर से निकल कर अपनी जन्म भूमि मकराहड़ के लिए रवाना हुए। ब्यास और गोमती के संगम में स्नान के बाद देवता अपनी मां का दूध पीने की रस्म पूरा करेंगे। देवता गूर के माध्यम से भारथा भी देंगे।
भगवान रघुनाथ जी की प्रतिमा भी यहीं लाई गई थी
देव महाकुंभ दशहरा पर्व का इतिहास भी इसी जगह से शुरू होता है। जब कुल्लू के राजा जगत सिंह ने अपने कुष्ठ रोग के निवारण के लिए अयोध्या से भगवान श्रीराम की मूर्ति चोर कर अपने लोगों के माध्यम से 1651 ईस्वी को लाई थी तो सर्व प्रथम यहीं रखी गई थी। यही नहीं दशहरा पर्व भी यहीं मनाया गया था। उसके बाद जगह आभाव के कारण मूर्ति मणिकर्ण ले जाई गई और यहां भी वोही परंपरा मनाई गई। उसके बाद नग्गर के ठाहुआ मूर्ति को ले गए और यहां भी दशहरा सहित सभी परंपराए भगवान रघुनाथ जी की मनाई गई। अंत में भगवान रघुनाथ जी के आशीर्वाद से राजा जगत सिंह इतने शक्तिशाली हो गए थे कि उन्होंने राजा सुल्तानपुरी की रियासत को कब्जा करने के लिए युद्ध शुरू किया। राजा सुल्तानपुरी युद्ध में शहीद हो गए और राजा जगत सिंह ने कुल्लू के सुल्तानपुर में कब्जा कर दिया। उसके बाद रघुनाथ जी की मूर्ति सुल्तानपुर कुल्लू 1662 ईस्वी को लाई गई और उसके बाद से अब तक दशहरा पर्व यहीं मनाया जाता है।