तुफान मेल न्यूज, सैंज
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बैसाख संक्रांति के दिन से पूरी सैंज व बंजार घाटी में मेले की शुरुआत होती है। देवालयों में देव परम्परा का निर्वाहन बीठ पर्व के रुप में किया जाता है। पटाहरा गांव में बुरांस के फूलों से बीठ वनाया जाता है जो कि एक विशेष लोहार जाति के लोगों द्वारा तैयार किया जाता है। जिसको नचाने की अनूठी परम्परा है। बीठ को पटाहरा गांव के पंडितों द्वारा नचाया जाता है। और साथ में जंगल से लताएं (वेल) लाकर रस्सी तैयार की जाती है। जिसको देव भाषा में “गूण” कहते है। उस गूण से पहाड़ी और तराई क्षेत्र के लोग आपस में रस्सा-कसी करते है । जो पार्टी इस खेल में जीत हासिल करती है। उसको देवी माता का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है उस इलाके में फसल अच्छी होती है।

एसा वुजूर्गों का मानना है।
मनैशी गांव के लोग वाज़े -गाजे के साथ देवता पुंडीर की तपोस्थली सराहरी (दलोगी) से एक पेड़ विधीवत तारीके से काट कर लाते है जिसको देव भाषा में “पड़ैई” के नाम से जाना जाता है। पड़ैई को मनैशी गांव में पंहूचाते है। उसके उपरांत गांव के सभी पुरुषों द्वारा उस पड़ैई पर तीर चलाय जाते है। जिसका तीर पड़ैई में सबसे पहले लगता है। उसको देवता की तरफ से विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। उपरोक्त परम्परा का निर्वाहन करने के उपरांत पटाहरा से माता दुर्गा का रथ और मनैशी से पुंडीर ऋषि का रथ देहुरी को रवाना हुए । देहुरी में देव मिलन हुआ। फिर दोनों देवता अपनी तपोस्थली पटाहिला थाच को रवाना हुए। और गूर के माध्यम से पूरी प्रजा को आशीर्वाद दिया गया।