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धधकते अंगारों में कूद पड़े सैंकड़ों मुखौटाधारी
एक बार फिर हुआ देव व दैत्यों के बीच में हुआ महायुद्ध
तुफान मेल न्युज, कुल्लू।
विश्व में दैत्य (राक्षस) की सबसे बड़ी संसद और इस संसद में दो दिनों तक चला दैत्य राज। सुनने में बेशक यह अटपटा लग रहा हो और शायद आज के आधुनिक जमाने में ऐसी संसद पर विश्वास करना भी मुमकिन नहीं है। किंतु यह एक कटु सत्य है कि जिला कुल्लू की सराज घाटी में विश्व की सबसे बड़ी दैत्य संसद का आयोजन हुआ और दो दिनों तक देवी-देवताओं का नहीं बल्कि दैत्य राज चला।
दैत्यों के इस सम्राज्य में न तो कोई हाय शर्म थी और न ही संस्कार। अभील जुमलों के बीच सराज घाटी गूंजती रही और राक्षस नृत्य चलता रहा। यही नहीं राक्षस रूपी मुखौटा धारी धधकते अंगारों के बीच कृदते रहे और सैंकड़ों लोग इसके साक्षी बने। देव भूमि कुल्लू की संस्कृति व परंपरा अनुठी और इस अनूठी संस्कृति के बीच ही इस दैत्य संसद की परंपरा के हजारों वर्ष पुरानी है। दरअसल इस दैत्य संसद को देवता व दैत्य के युद्ध से भी जोड़ा जाता है। परंपरा के अनुसार माना जाता है वि जब देवता व राक्षसों का युद्ध हुआ था तो दैत्यों की पराजय हुई थी तब दैत्यों ने देवताओं से यह मांग की थी कि वर्ष भर में 363 दिन वे धरती को छोड़ देगें और उन्हें सिर्फ वाई में दो दिन का सम्राज्य दिया जाए। देवताओं ने राक्षसों की इस शर्त को माना था और उनके लिए दो दिन वर्ष में दिए ताकि वे अपनी संसद का आयोजन कर सके तथा इसी परंपरा का आज भी देव भूमि में निर्वाह होता है। देव व दैत्य युद्ध में हारे हुए दैत्यों के प्रतीक मुखौटों के रूप में आज भी देव भूमि में धरोहर के रूप में विराजमान है।
इन दो दिनों में इन देत्य रूपी मुखौटों की लोग पूजा करते हैं और दैत्यों के इस महाकुंभ का आयोजन होता है। सराज घाटी की श्रृंगा व गोपालपुर कोटी के हर गांवों में मुखौटा नृत्य होता है और अंतिम दिन सभी गांवों के मुखौटाचारी व सैंकड़ों लोग गांव में पहुंचते हैं तथा यहां पर दैत्य संसद का आयोजन होता है। बकायदा मुखौटाधारी दैत्यों का मिलन होता है और सैंकड़ों मुखौटाधारियों का नृत्य अश्श्रील जुमलों के बीच होता है। यही नहीं अंत में देव व दैत्यों का युद्ध होता है और फिर से एक बार दैत्यों को हार स्वीकार करके धरती लोक छोड़ना पड़ता है और देवताओं का सम्राज्य स्थापित किया जाता है। इस बीच कई मुखौटाधारी अपनी शक्ति से कई चमत्कार दिखाते हैं तथा लोग दांतों तले उंगली डालकर यह चमत्कार देखते हैं। अधिकतर मुखौटाधारी धधकते अंगारों में नंगे पांव कूद पड़ते हैं। और सारे अलाव को बुझा डालते हैं। इस घटना में मुखौटाधारियों के पांव व शरीर को अग्निदेव छू भी नहीं पाते हैं। पढ़ारनी गांव में तो शोट नामक मुखौटाधारी हर घर में जले अलाव में कूदता है बहरहाल देव भूमि में दो दिनों तक दैत्यों की संसद चली और विश्व का सबसे बड़े दैत्य नृत्य का आयोजन हुआ।