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तूफान मेल न्यूज बिलासपुर।
गेहड़वीं के चंगर सेरूआ में चल रहे महा शिवपुराण कथा के तीसरे दिन प्रवचनों
की अमृतवर्षा करते हुए कथावाचक पंडित सुरेश भारद्वाज ने माता सती की कथा
सुनाई। उन्होंने बताया कि प्राचीन समय में एक ब्रह्म सभा में सभी देवता
उपस्थित थे, जब दक्ष प्रजापति के वहां पहुँचने पर सभी देवता सम्मान
प्रकट करने के लिए उठ खड़े हुए लेकिन शंकर जी बैठे रहे तो दक्ष प्रजापति
ने क्रोधित हो कर कहा कि तुम में शिष्टता नहीं है, दक्ष प्रजापति ने
क्रोध में भगवान शिव को श्राप दिया कि इंद्र आदि देवताओं के समान तुम को
यज्ञ में भाग न मिले।
दक्ष के शाप को सुनकर नंदी ने शाप दिया कि दक्ष और उसके समर्थकों को
सशरीर आनंद प्राप्त ना हो और कर्मकांड में पड़ कर दुख पाते रहे। यह सुनकर
भृगु ऋषि ने क्रोधित होकर कहा किए जो शिव के भक्त होगे वे शास्त्रों के
प्रतिकूल पाखंडी कहे जाएंगे। यह सुनकर भगवान शिव वहां से चले गये। मां
सती के पिता दक्ष ने एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया। यज्ञ का भाग लेने
के लिए सभी देवताओं को निमंत्रण भेजा। जब सती ने देखा कि आकाश मार्ग से
सभी अपने-अपने विमानों में जा रहे हैं। उन्होंने पूछा भगवान शिव से पूछा
कि यह सब कहां जा रहे हैं। शिवजी ने बताया कि तुम्हारे पिता दक्ष
प्रजापति बहुत बड़ा यज्ञ कर रहे हैं लेकिन मुझ से विरोध के कारण मुझे नहीं
बुलाया क्योंकि एक बार ब्रह्मा जी की सभा में वह मुझ से अप्रसन्न हो गए
थे। माँ सती ने बिना बुलाए ही अपने पिता दक्ष के यज्ञ में जाने के लिए
भगवान शिव से अनुमति मांगी। किंतु भगवान शिव ने कहा मित्र, पिता, गुरु और
स्वामी के घर बिना बुलाए जा सकते हैं, लेकिन जब आपस में विरोध चल रहा हो
तो स्नेह नहीं मिलेगा। लेकिन जब किसी भी तर्क से सती नहीं मानी तो भगवान
शिव ने गणों को उनके साथ भेज दिया। यज्ञ में पहुंचकर सती ने यज्ञ में
भगवान शिव का भाग नहीं देखा तो उनका शरीर क्रोध की अग्नि में जलने लगा।
उनका शरीर जलता देख शिव जी यह सुनकर क्रोधित हुए तो उन्होंने सती को
उठाया और ब्रम्हाड में निकल गए। जहां-जहां सती माता के अंग गिरे
वहां-वहां आज शक्तिपीठ हैं। कथा समापन पर प्रसाद वितरण भी किया गया।