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-ढालपुर मैदान के स्टॉलों में लोकल व्यंजनों के चटकारे ले रहे लोग-
दशहरा पर्व की दुकानों में उमड़ी भारी भीड़, व्यापार में बढ़ोतरी
नीना गौतम, कुल्लू। अंतरराष्ट्रीय दशहरा पर्व के लिए ढालपुर मैदान में सजी दुकानों में अब ग्राहकों की भारी भीड़ उमडऩे लगी है। 8 नवंबर तक यहां पर यह दुकानें सजी रहेंगी और ग्रामीण क्षेत्रों के लोग सर्दियों के लिए जहां गर्म कपड़े खरीद रहे हैं वहीं, अन्य सामान की खरीददारी भी भारी मात्रा में हो रही है।
इसके अलावा कुल्लू के ढालपुर मैदान में आजकल लोकल व्यंजनों के चटकारे लेने के लिए लोग दूर-दूर से पहुंच रहे हैं। मैदान में सजे व्यापारियों के अलावा बाहर से आने वाले ग्राहक व पर्यटक यहां पर स्थानीय व्यंजनों का भरपूर लुत्फ उठा रहे हैं। कुल्लू का लोकल सिड्डू जहां पूरी तरह से मशहूर हो गया है वहीं, अब यहां पर मक्की की रोटी व साग के भी चटकारे लग रहे हैं।
यही नहीं अब तो विलुप्त हो चुकी कोदरे की रोटी,कोदरे की चाय व कोदरे के सिड्डू की भी भारी मांग है और लोग पूरी तरह से इस पारंपरिक व ऑर्गेनिक व्यजंन के दीवाने हो गए हैं। दशहरा पर्व में लगे स्टालों में कोदरे की रोटी,कोदरे के सिड्डू व कोदरे की चाय के लोग दीवाने हो गए हैं। बिलासपुरी ढाबे में तो मक्की की रोटी के अलावा कोदरे की रोटी के साथ साग भी उपलब्ध हो रहा है। दशरहा मैदान में सजे बिलासपुरी ढाबा में कोदरे की रोटी व साग के लिए भारी भीड़ लगी हुई है।
इस ढाबा में महिलाएं सुबह से लेकर रात तक मक्की की रोटी के अलावा कोदरे की बनाने में व्यस्त हैं। यहां पर कई बार तो कोदरे की रोटी व साग के चटकारे लेने के लिए लाईन में खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार करना पड़ रहा है। यही नहीं यहां दशहरा मैदान में लोग कोदरे की रोटी व साग को घर को भी पैक करके ले जा रहे हैं। मेले में लगे ढाबा में कोदरे की रोटी के दिवानों की खूब भीड़ देखी जा सकती है। खास बात यह है कि इस तरह के व्यंजनों को महिलाओं द्वारा ही बनाया जा रहा है और ग्राहकों को भी परोसा जा रहा है।
बिलासपुरी ढाबा में इस वक्त करीब 4 महिलाएं कोदरे व मक्की की रोटी बनाने में व्यस्त हैं और डिमांड इतनी है कि उनसे पूरी नहीं हो रही है जो इस तरह वे व्यंजन बनाकर स्वरोजगार अपना रही है। यह ढ़ाबा डोम के समीप खाने-पीने की दुकानों की लाईन में लगा हुआ है और यहां पर सुबह से लेकर देर रात तक खूब भीड़ लग रही है। दशहरा पर्व में आए लोग कोदरे की रोटी,मक्की की रोटी, साग, कढ़ी व मक्खन के चटकारे लेना नहीं भूल रहे हैं। बिलासपुरी ढाबा के मालिक ने बताया कि वे पिछले 15-16 वर्षों से यह काम चला रहे हैं और आज कोदरे व मक्की की रोटी व साग पूरे मेलों में प्रसिद्ध हो गए हैं। उन्होंने बताया कि स्थानीय लोगों के अलावा बाहरी राज्यों से आए व्यापारी भी कोदरे व मक्की की रोटी व साग के चटकारे लेना नहीं भूलते। उन्होंने बताया कि अब वे दशहरा पर्व में कोदरे व मक्की की रोटी बनाते-बनाते थक चुके हैं और भीड़ कम नहीं हो रही है। उन्होंने बताया कि दशहरा पर्व के बाद वे अब लवी मेले में भी हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी जाएंगे और लोगों को कोदरे व मक्की की रोटी व साग खिलाएंगे। उधर, सिड्डू ,मोमो, चोमिन, व कचौरी के स्टाल भी यहां चल रहे हैं। गौर रहे कि सबसे पहले दशहरा पर्व में यहां की लुप्त हो रही लोकल डिश सिड्डू को रजनी ने पहली बार वर्ष 2001 में बाजार में उतारा था जो आज पूरी तरह से प्रसिद्ध हो गए हैं। अब बिलासपुरी ढाबा ने कोदरे व मक्की की रोटी व साग लाकर इस स्थानीय व्यंजन को भी मार्केट में उतारा है जिसे लोग बेहद पसंद कर रहे हैं।