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सात दिन बाद तपस्वी की जिदंगी बिताने के बाद देवताओं के साथ लौटे कारकून
-बाह्य सराज के देवता एक सप्ताह बाद पहुंचेगेें देवालय की चौखट पर
-देवताओं के देवालय रवानगी की खबर सुनते ही चहक उठे ग्रामीण
-देवताओं की घर रवानगी से देव आस्था से सूना पड़ा ढालपुर मैदान
नीना गौतम ,कुल्लू तूफान मेल न्यूज
अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव में सात दिन के बाद रावण का वध कर व लंका दहन करके जिला के सभी देवी-देवता अपने देवालय वापस लौट पड़े हैं। लंका पर चढ़ाई के लिए हुई रघुनाथ यात्रा में भाग लेने के बाद यहां पहुंचे 274 देवी-देवताओं ने घर वापसी के लिए कूच किया है। लिहाजा, सात दिनों तक चले इस ऐतिहासिक देव महाकुंभ में धरती पर उतरे देवता रवाना हो गए हैं और ढालपुर मैदान देवी-देवताओं के बिना सूना पड़ गया है। सात
दिनों तक तपस्वी की जिंदगी बीता कर शनिवार को देवी-देवता के कारकून भी अपने देवी-देवताओं के साथ देवालय की ओर कूच कर गए हैं। वहीं, दशहरा उत्सव में अपनी भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए 200 किमी की दूरी तय कर पैदल यहां पहुंचे बाह्य सराज के अधिष्ठाता देवी देवताओं ने दोपहर से पूर्व अपने देवालय की ओर प्रस्थान करना शुरू कर दिया है। ग्रामीणों की कंधों पर सवार होकर लौटे सराज घाटी के देवता पांच पड़ावों में रूकने के बाद करीब एक सप्ताह बाद अपने देवालय की चौकट में पहुंचेंगे। जबकि भीतरी सराज के देवता चार और पांच दिनों के अंदर अपने देवालय पहुंचेगें। सोने-चांदी व अन्य आभूषणों से लदे इन देवरथों को चार लोग उठाते हैं।
गौर रहे कि पिछले करीब एक सप्ताह तक अपने अस्थाई शिविरों में तपस्वी की तरह जीवन बिताने वाले देवता के कारकूनों व हरियानों ने देव परंपरा के अनुरूप इस प्रथा को निभाया है। सात दिन तक लगातार इन कारकू नों को देवता की चाकरी करनी पड़ती है। शुक्रवार को जिला के बंजार, आनी व निरमंड क्षेत्र के अधिकतर दूरी वाले देवताओं ने अपने देवालय की ओर कूच कर दिया है। इसकी व्यवस्था के चलते इन देवताओं को अपने देवालय पहुंचने में निर्धारित समय से भी अधिक समय लग सकता है। उधर, दशहरा से देवताओं की देवालय वापसी की खबर सुनते ही ग्रामीण लोगों में खुशी की लहर है। देवताओं के दशहरा उत्सव में भाग लेने के चलते ग्रामीण क्षेत्रों में सभी धार्मिक आयोजन व देवी देवताओं की पूजा-अर्चना पूरी तरह से बंद रहती है।
वहीं, कुछ देवताओं के कपाट भी तब तक बंद रहते है जब तक देवता अपने मंदिर नहीं पहुंच पाता है ऐसे में ग्रामीण क्षेत्र में देवताओं के मंदिर क्षेत्र व ग्रामीणों को पूरा वातावरण सूना सा रहता है। कारदार कहा कि आनी के देवता खुड़ीजल सहित देवता व्यास ऋषि कुइंर,देवता चोतरू नाग, देवता टकरासी नाग, देव कोट पुझारी आनी व देवता सत्प ऋषि, देवी दुराह, देवता चंभु समेत बाह्य सराज से आए दभी 10 देवी देवता अपने-अपने देवालय की ओ कूच कर दिया है।
उन्होंने कहा सभी देवताओं को कंधो में सवार होकर देवालय पहुंंंचाया जाता है ओर सफर भी लंबा है। उन्होंने माना कि देवता करीब एक सप्ताह के आस पास अपने-अपने देवालय पहुुंच जाएंगे।