तुफान मेल न्यूज,कुल्लू। हॉप्स,कुठ,छरमा,आलू व मटर की खेती के बाद शीत रेगिस्तान लाहुल स्पीति जिला गोभी की फसल के लिए भी प्रसिद्ध हो गया है। लेकिन अब इन सबसे हट कर अब लाहुल स्पीति में काठु की फसल भी लहलहाती नजर आएगी। शीत मरु भूमि के खेत अब काठू की फसल से लहलहाएंगे। हिमालयी जैव संसाधन प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएचबीटी) पालमपुर के शोधार्थी लाहुल घाटी के मडग्रां गांव में इसके ऊपर शोध कर रहे हैं। काठू की फसल को तैयार करने के लिए मडग्रां में 300 किस्मों की ट्रायल पर बिजाई की गई है। शोधार्थियों की मानें तो इसमें सबसे उन्नत गुणवत्ता की फसल के बीज को अहमियत में रखा गया है। लाहुल के साथ चंबा में भी इस पर शोध किया जा रहा है। वैज्ञानिकों की मानें तो इसके सार्थक परिणाम आने पर हिमाचल में विलुप्त हो रही काठू की फसल की बड़े पैमाने पर खेती की जा सकेगी। लाहुल घाटी में बड़े पैमाने पर काठू की खेती होती थी। लोग इसे एक समय खाने के लिए इस्तेमाल करते थे।नगदी फसलों में विभिन्न किस्मों की सब्जियों और आलू की खेती से काठू की खेती सिकुड़ गई। शोधकर्ताओं का कहना है कि काठू की सब्जी में प्रोटीन और कैल्शियम भरपूर मात्रा में पाया जाता है। मार्केट में इसके बिस्कुट, नूडल्स, आटा और कई अन्य उत्पाद भी हैं। आज यह खेती विलुप्त होने की कगार पर है। आईएचबीटी पालमपुर की वैज्ञानिक डाॅ. वंदना जायसपाल ने बताया कि वह पिछले तीन साल से लाहुल में काठू की फसल पर शोध हो रहा है। सीएसआईआर-आईएचबीटी पालमपुर के निदेशक डाॅ. सुदेश कुमार यादव ने बताया कि लाहुल में काठू फसल के 300 किस्म के बीज लगाए गए हैं। जिस बीज के सार्थक परिणाम सामने आएंगे और यहां काठू की फसल बड़े स्तर पर तैयार होगी। काठू एक अनाज है, जिसे स्थानीय भाषा में ब्राफो और फुलाई भी कहा जाता है। इसके आटे से रोटी और अन्य पकवान बनाए जाते हैं। इसका स्थानीय व्यंजन चिलड़ा काफी प्रसिद्ध है। विशेषज्ञों के अनुसार इसमें प्रचुर मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है। लाहुल के अलावा प्रदेश के ऊंचाई बाले क्षेत्र में यह फसल होती है। इसके पतों से वेहद स्वादिष्ट हरी सब्जी बनती है।
शीत रेगिस्तान में होगी अब काठु की खेती,शोध पूर्ण
