विजली महादेव मंदिर में उमड़ी भगतों की भीड़,रोजाना पहुंच रहे हैं सैंकड़ों श्रद्धालु
तुफान मेल न्यूज, कुल्लू.
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विजली महादेव मंदिर में उमड़ी भगतों की भीड़,रोजाना पहुंच रहे हैं सैंकड़ों श्रद्धालु
तुफान मेल न्यूज, कुल्लू।
कुल्लू जिला के प्रसिद्ध पवित्र स्थल विजली महादेव में आजकल श्रद्धालुओं की खूब भीड़ उमड़ रही है। श्रावन माह में महादेव के दर्शन के लिए रोजाना सैंकड़ों श्रद्धालु यहां पहुंच रहे हैं। हिमाचल प्रदेश के सबसे पवित्र स्थानों में से एक बिजली महादेव मंदिर है। जिसे भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में गिना जाता रहा है। खूबसूरत पहाड़ी पर स्थित ये मंदिर पार्वती और ब्यास नदियों के संगम के करीब है, जो भगवान शिव को समर्पित है। 2460 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर का इतिहास काफी रोचक है। ऐसा माना जाता है कि मंदिर का निर्माण कुलंत नामक राक्षस को मारने के बाद हुआ था। कहते हैं कि दानव कुलंत ब्यास नदी के प्रवाह को रोककर घाटी को जलमग्न करना चाहता था। अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए उन्होंने एक अजगर का रूप धारण किया। वह जमीन पर मौजूद हर जीवन रूप को पानी के नीचे डुबो कर मारना चाहता था। ऐसे में भगवान शिव को उनके उपक्रम के बारे में पता चल गया जिसके बाद वे राक्षस का अंत करने के लिए
भगवान शिव ने राक्षस को पीछे मुड़कर देखने के लिए कहा और फिर जैसे ही उसने मुड़कर देखा तो उसकी पूंछ में आग लग गई। कहा जाता है कि जिस पर्वत पर बिजली महादेव मंदिर स्थित है, वह मृत दानव के शरीर से बना था। उसके बाद, उनका शरीर आस-पास की भूमि को ढक गध एक पहाड़ के आकार में बदल गया। बिजली महादेव को लेकर स्थानीय लोगों का ऐसा मानना है कि कुलंत को हराने के बाद वह भगवान इंद्र के पास गए और उनसे कहा कि वे हर बारह साल में पहाड़ पर बिजली के झटके मारें। लोगों की मानें तो महादेव नहीं चाहते थे कि उनके भक्तों को बिजली से नुकसान हो, इसलिए हर बारह साल में मंदिर पर गिरने वाली बिजली सीधे शिव लिंग पर गिरती है। भगवान शिव स्वयं पर यह विपदा लेते हैं और जनमानस की रक्षा करते हैं।
खास बात हर बार जब बिजली महादेव शिवलिंग पर बिजली गिरती है और वह शिवलिंग टूट कर चकनाचूर हो जाता है। माना जाता है कि मंदिर के पुजारी हर टुकड़े को इक्कट्ठा करके मक्खन से जोड़ते हैं और शिव लिंग पुनः जुड़ जाता है। बिजली महादेव मंदिर पहुंचने के लिए कुल्लू से सरल रास्ता है। बिजली महादेव मंदिर कुल्लू से करीब 24 किलोमीटर दूर है। मंदिर तक पहुंचने के लिए खराहल घाटी के चनसारी और डोभा तक सड़क मार्ग है जबकि वहां से आगे करीब दो किलोमीटर आपको एक ट्रैक को पूरा करना होता है। ट्रैकिंग के शौकीनों को ये अपनी ओर आकर्षित करता है।
