विक्रमादित्य सिंह की यह कैसी परीक्षा,जीते तो प्रदेश की राजनीति से बाहर, हारे तो…


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तूफान मेल न्यूज,डेस्क। देश की हॉट सीट बनी मंडी लोकसभा सीट से आखिरकार लोकनिर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह को चुनावी मैदान में उतार लिया गया है। अब प्रदेश के किंग और बालीबुड की क्वीन में रोचक मुकाबला होगा। दोनों दल इस सीट को जीतने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाएंगे। लेकिन प्रदेश की राजनीति में इस समय एक ऐसा मोड़ आ गया है कि पहले कांग्रेस सरकार पर राजनीतिक संकट और अब मंडी सीट जितने की लालसा। खास बात यह है कि विक्रमादित्य सिंह के लिए यह एक बड़ी परीक्षा की घड़ी है। विक्रमादित्य सिंह यदि यह चुनाव जीत गए तो प्रदेश की राजनीति से बाहर हो जाएंगे और लोकसभा में पहुंच जाएंगे। यही नहीं लोकनिर्माण मंत्री का पद भी छोड़ना पड़ेगा। यदि विक्रमादित्य सिंह यह चुनाव हार गए तो उनका मंत्री पद तो कायम रहेगा लेकिन सुक्खू सरकार व अपने ही संगठन में थोड़े कमजोर पड़ जाएंगे कि उन्होंने चुनाव नहीं जीता और अपनी पुश्तेनी सीट पर उनकी पकड़ कमजोर पड़ गई है। ऐसी स्थिति में विक्रमादित्य सिंह के लिए यह कड़ी परीक्षा की घड़ी है। उन्हें अपनी पार्टी,अपने परिवार व अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए इस सीट को जीतने के लिए साम,दाम,दंड,भेद सभी का प्रयोग करना होगा। मंडी जितना उनके लिए आवश्यक हो गई है लेकिन यह जीत उन्हें प्रदेश की राजनीति से बेदखल कर देगी यह सब जानते हैं। अब देखना यह हैं कि विक्रमादित्य सिंह का ऊंट किस करवट बैठता है। प्रदेश की राजनीति में यह बदे फेरबदल की स्थिति प्रदेश सरकार को कितना नफा व नुकसान पहुंचाती है यह भविष्य के गर्व में छिपा है। मंडी लोकसभा सीट पर वीरभद्र सिंह व राज परिवार का दबदबा रहा है। मंडी से 3 बार वीरभद्र सिंह और 3 बार ही प्रतिभा सिंह भी सांसद चुनी जा चुकी हैं। इसी तरह मंडी में 20 में से 14 चुनाव राज परिवारों ने जीते हैं। इसे देखते हुए कांग्रेस ने वीरभद्र-प्रतिभा के बेटे एवं लोनिवि मंत्री विक्रमादित्य सिंह पर दांव खेला है।विक्रमादित्य सिंह मंडी सीट से लोकसभा चुनाव जीतते हैं तो उनकी एंट्री दिल्ली की राजनीति में हो जाएगी। मगर, उन्हें स्टेट की राजनीति से दूर होना पड़ेगा। चुनाव में हार हुई तो वह विधायक व मंत्री जरूर बने रहेंगे। मगर, यह हार उनके सियासी करियर और लोकप्रियता पर प्रश्न चिन्ह लगा देगी। जिससे वह मौजूदा सीएम सुखविंदर सुक्खू खेमे के आगे कमजोर साबित होंगे। गौर रहे कि भाजपा ने युवा एवं बालीबुड कंगना रणौत को प्रत्याशी बनाकर बलीबुक ग्लैमर को जनता के बीच उतारा हिमाचल। इसलिए कांग्रेस के सामने किसी युवा चेहरे को मैदान में उतारने की चुनौती रही। कांग्रेस ने बड़ी चुनौती स्वीकारते हुए विक्रमादित्य सिंह को चुनाव में उतारा है। जबकि प्रदेश की राजनीति इस समय संकट में हैं और विधायकों का आंकड़ा भी घटता जा रहा है। सरकार को पूर्ण विश्वास है कि जिन छह विधान सभाओं में चुनाव होने हैं उनमें सरकार अपने विधायकों का आंकड़ा पूरा कर लेगी। इसलिए ही दो विधायकों विक्रमादित्य सिंह व सुल्तानपुरी पर दांव खेला हैं। यदि दोनों उम्मीदवार जीत जाते हैं तो प्रदेश सरकार के पास विधायकों का आंकड़ा 32 रह जायेगा। ऐसी स्थिति में बढ़त बनाने के लिए सरकार को छह में से चार सिटें जरूरी होगी। तभी आंकड़ा 36 का बनकर बहुमत में होगा। हलांकि अभी सरकार सुरक्षित है क्योंकि अभी निर्दलीय विधायकों के इस्तीफे भी विचाराधीन है।

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