देव श्रीबड़ा छमाहूं व चार छमाहूं के इतिहास से भरा पड़ा है कुल्लू व मंडी सराज


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तूफान मेल न्यूज,कुल्लू। देवी- देवता हमारे जीवन का अभिन्न अंग है। खासकर प्रदेश के कुल्लू व मंडी जिला में कुल देवता व इष्टदेव को घर परिवार या क्षेत्र का मुख्य माना जाता है। कोई भी शुभ कार्य हो या घर में कोई आयोजन करना हो तो उस क्षेत्र या घर के मुख्य देवी या देवता की अनुमति ली जाना यहां की सांस्कृतिक परंपरा में अनिवार्य है।

हर क्षेत्र व परिवार में कुल व इष्टदेव की पूजा हर दिन होती है। इसी तरह जिला कुल्लू व मंडी सराज में देव श्रीबड़ा छमाहूं अधिकतर क्षेत्र के लोगों के इष्टदेव व कुल देव हैं। छमाहूं शब्द का अर्थ है छह जमा समूह या मुंह। यानिकि छह देवी -देवताओं की सामूहिक शक्ति। ओम शब्द ही छमाहूं है। आम प्रचलन में माना जाता है कि ओम शब्द तीन प्रमुख देवताओं ब्रह्मा,विष्णु व महेश का प्रतीक चिन्ह है लेकिन वास्तव में ओम शब्द छह देवी देवताओं ब्रह्मा,विष्णु,महेश, आदी,शक्ति, शेष की वोह अमर वाणी है जिसमें पूरी सृष्टि वास करती है।

सृष्टि की रचना भी ओम शब्द से जुड़ी हुई है। महाप्रलय के बाद जब सृष्टि की पुन: रचना हुई है उसी समय देव छमाहूं की उत्तपत्ति हुई है। इसका पुराणों व शास्त्रों में प्रमाण है। सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा, विष्णु,महेश को आदी व शक्ति का आवाह्न करना पड़ा। इस तरह पांच शक्तियां सृष्टि की रचना में जुट गई। जब पूरी सृष्टि की रचना कर ली गई और अंधकार समुद्र में समाहित सभी ग्रहों को अपने अपने स्थान पर स्थापित किया गया तो सृष्टि की रचना लगभग पूर्ण हो चुकी थी लेकिन अंधकार समुद्र में काफी समय तक डूबे रहे सभी ग्रहों से जो ऊर्जा उतपन्न हुई वह भयावह थी और उस ऊर्जा ने एक बार फि र से उत्थल पुथल मचाना शुरू किया।

विशालकाय नाग के आकार में उभरी इस शक्ति ने जब फिर से सृष्टि को अपने आगोश में लेना शुरू किया तो ब्रह्म, विष्णु, महेश ने उससे पूछा कि तुम कौन हो तो उक्त शक्ति ने कहा कि मैं सृष्टि का शेष भाग हूँ जो सभी ग्रहों की ऊर्जा से उतपन्न हुआ हूँ और तीनों देवों ने उक्त शक्ति को तथास्तु करके अपने में समाहित किया और सृष्टि की रचना पूरी हुई। तभी छमाहूं का अवतार हुआ और छमाहूं छह देवी देवताओं की सामूहिक शक्ति बनी जो सृष्टि के रचनाकार हुए। वर्तमान में छमाहूं देवता की धरती कुल्लू व मंडी सराज है। माना जाता है छमाहूं आज भी सृष्टि के चारों दिशा में विराजमान है। वर्तमान में छमाहूं के चार रथ है। पांचवा रथ शक्ति का है। जबकि आदि ब्रह्मा का रथ नहीं बल्कि सुंदर स्थान है जिसे हंसकुण्ड के नाम से जाना जाता है। हंसकुंड को ब्रह्म का रूप मानकर स्वच्छ देवता माना जाता है और कलश व फू लों के गुछों के रूप में माना जाता है। सराज घाटी में चार छमाहूं की देउली प्रमुख स्थान रखती है। छमाहूं के चार रथों को चार भाईयों व शक्ति को वहन के रूप में माना जाता है। जबकि आदि ब्रह्म को घाटी के देवता गुरु के रूप में मानते हैं। इन सभी देवी देवताओं का पृथ्वी पर अवतार स्थान सराज घाटी का दलयाड़ा गांव है। आज भी यह स्थान छमाहूं की अवतार भूमि मानी जाती है और सभी देवी देवता के रथ समय समय पर यहां के भव्य मंदिर में एकत्र होते हैं। देवता के पुजारी धनेश गौतम व कृष्ण गौतम ने बताया कि छमाहूं के सबसे बड़े भाई को देव श्रीबड़ा छमाहूं के नाम से जाना जाता है और देव श्रीबड़ा छमाहूं की प्रमुख कोठी कोटला गांव में विराजमान है। इसके अलावा देव श्रीबड़ा के अठारह देउल में मंदिर, भंडार व मधेउल में विराजमान है।

इसके बाद दूसरे स्थान के छमाहूं का रथ सराज घाटी के पलदी क्षेत्र में विराजमान रहता है और इन्हें पलदी छमाहूं के नाम से भी जाना जाता है। पलदी छमाहूं का प्रमुख मंदिर बड़ाग्रां में है और इसी तरह इनके अन्य मंदिर अठारह देउल में विराजमान है। तीसरा रथ जिला मंडी के सराज विधानसभा क्षेत्र के खणी गांव में विराजमान है। इन्हें खणी छमाहूं के नाम से भी जाना जाता है। जबकि चौथा रथ सबसे छोटे छमाहूं भाई का लारजी धामण क्षेत्र में विराजमान है। इन्हें धामणी छमाहूं के नाम से भी जाना जाता है। देवता का मुख्य मंदिर धामण गांव में है जबकि कोठी कोटला में ही विराजमान है। इसी तरह शक्ति का रथ व मंदिर धराखरी गांव विराजमान है। जबकि आदि ब्रह्मा का मुख्य स्थान तीर्थन घाटी के ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क में सबसे ऊंचाई पर हंसकुड नामक स्थान पर है। इस तरह सराज घाटी में छमाहूं का राज्य विशाल है लेकिन प्रमुख स्थान दलयाड़ा ही है जहां सभी रथों देवताओं का समय समय पर भव्य मिलन होता है। छमाहूं देवी देवता का अवतार उत्सव नव संवत माना जाता है। सृष्टि की रचना का पहला दिन नव संवत ही है और यहां घाटी के कोटला गांव में नया संवत बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। छमाहूं देवता के बारे में कई चमत्कारी घटनाओं का वर्णन आता है। रूपी घाटी के सचाणी में देवता ने पानी की कमी को पूरा करने के लिए सप्त वसु धारा का निर्माण किया जो आज भी विराजमान है। देव श्रीबड़ा छमाहूं आज भी परिक्रमा के दौरान यहां जाते हैं। इसी तरह फगवाना गांव में पांच बावड़ियों का निर्माण किया है। बताया जाता है कि देवता ने यहां पानी की कमी को पूरा करने के लिए दरात से भूमि में पांच लकीरें खींची और यहां पानी के पांच चश्में फूट पड़े जो आज भी लोगों की प्यास बुझाते हैं। वहीं दलयाड़ा मंदिर के पास सौर मौजूद है जिसे गंगाजल से भी अधिक पवित्र माना जाता है। सभी देवता इसी सौर में स्न्नान करते हैं। सराज घाटी में देव श्रीबड़ा छमाहूं को सबसे बड़ा स्थान दिया गया है इसलिए देव रथ सबसे आगे यानिकि हमेशा धुर में विराजमान रहता है। देवता की गोद में पराशर ऋ षि विराजमान रहते हैं और कमर में शक्ति व करथा नाग विराजमान रहते हैं। जब करथा नाग कमर में विराजते हैं तो शक्ति के मोहरे को उतारा जाता है। इसके अलावा देव श्रीबड़ा छमाहूं के समक्ष जो अन्य देवता हमेशा हाजरी भरते है और देव सभा में जो अन्य देवता उपस्थित रहते हैं या चाकरी करते हैं उनमें अन्य तीन छमाहूं तो शामिल है ही इसके अलावा वासुकी नाग, करथा नाग,खोडू, खरिहडु, छजणु वनशिरा पटरुणु, भोऊंणी, पराशर ऋषि, जौहल,डालु वनशीरे, जोगणी आदि अनेकों देवी देवता शामिल है। इसके अलावा देव श्रीबड़ा छमाहूं 44 हजार योगनियों से घिरे रहते हैं। यदि कोई अप्रिय घटना घटने बाली होती है तो देवता के मुख्य मोहरे से आंसू टपकते हैं। इतिहास के मुताविक मंडी व सुकेत के राजा के साथ देवता का मुख्य मोहरा की बात चीत होती थी और इस खुशी पर मंडी के राजा ने देवता को कई उपहार दिए हैं। देवता ने आजतक किसी का भी आधिपत्य नहीं स्वीकारा है। लिहाजा मंडी व कुल्लू सराज में देवता छमाहूं की मान्यता है और यहां श्रद्धालू दूर दूर से देव आशीर्वाद लेने आते हैं।

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