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तूफान मेल न्यूज,कुल्लू
एक बार फिर देवभूमि कुल्लू मौत को मात देने का खेल का गवाह वना दरपोईन। इस बार जिला की महाराजा कोठी के गांव दपोईन में करीब 5साल बाद यहां काया का यज्ञ यानि काहिका मनाया गया। देवता जम्दग्नि के प्रांगण में इस काहिका को लेकर देवलुओं ने पूरी तैयारियां कर थी है।18 अगस्त को नड़ बदाह यानि नड़ मारने की अहम रस्म निभाई गई।साथ ही देवी देवताओं की शक्ति की भी परीक्षा ली गई। क्यों कि मुर्छाअवस्था में मारे गए नड़ को चेतावनस्था में लाने की जिम्मेदारी देवताओं की होती है। देवता के कारदार देवी सिंह का कहना है। कि नड़ को मुर्छा आने के बाद उसे पुनः चेतानावस्था में लाया जाता है।जिसमें देवी देवता के गुर देवशक्ति से नड़ को जीवित किया।
काहिका उत्सव में ढालपुर के देवता गौहरी, नैना सैरी के वीर वराधी, लोट के वीर, दरपोईन की माता जोगणी ओर स्थानिय देवता जम्दग्नि ने हिसा लिया। देवताओं के प्रतिनिधियों का कहना है कि यहां पर हर पांच साल के वाद काहिका उत्सव का आयोजन किया जाता है। काहिका विशेष रूप से घाटी के लोगों की सुख-स्मृद्वि के लिए होता है। और देवता के आदेश से ही काहिका मनाया जाता है।
अशोक की भूमिका होगी अहम
काहिका उत्सव में लगघाटी के भुटटी गांव के नड़ जाति का व्यक्ति अशोक की मुख्य भूमिका अदा की। बताया गया है कि अशोक को देवता मुर्छित किया और फिर देव शक्ति के वल पर ही नड़ को जिंदा हुआ। नड़ को मुर्छित करने के लिए देवता जम्दग्नि के कारदार चारों दिशाओं मे तीर मार कर मुर्छित किया गया और देवता के मन्दिर के चारों आर तीन चक्कर लगा कर नड़ को पुनः दैविय शक्ति से जीवित किय गया।
काहिका काया यज्ञ पाप का प्रायश्चित और व्याधियों को शमन करता है। लोक मान्यता है। कि जव भी किसी क्षेत्र में पाप की अधिकता हो जाती है। तो उसे पाप के खात्में के लिए काहिका का आयोजन किया जाता है। इसमें नड़ क्षेत्र में व्याप्त पाप की गठरी को स्र्वलोक में ले कर जाता है, और बहां पहुंचाकर वापस आता है। यदि पाप की गठरी भारी हुई तो उसे उठाते-उठाते नड़ के प्राण भी जा सकते हैं।काहिका अवधि कहीं यह तिथि देवता की इच्छा पर निर्भर करती है।
3बार हो चुकी है नड़ की मौत
कुल्लू में नड़ के माध्यम से मौत को मात देने के इस खेल में अब तक 3 बार नड़ की मृत्यु भी हो चुकी है। इतिहास के पन्नों में दफन हुए काहिका
इतिहास का यह लेखा-जोखा प्रसिद्ध साहित्यकार मौलू राम ठाकुर की पुस्तक पहाड़ी संस्कृति मंजूषा व डाॅ रमेश डाॅ रमेश कुमार का शोध कुल्लू की काहिका संबंधी यक्ष परम्परा और सामाजिक प्रासंगिकता नामक पुस्तक में मिलता है। शिरढ़ काहिका , रूमटे सौह व आदि ब्रम्हा के खोखण में नड़ की मृत्यु हो चुकी है। काहिका में यदि नड़ जाति के व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। तो इस स्थिति में काहिका मेले में उपस्थित सभी देवताओं के रथों को जलाया जाता है। और रथ के सभी गहने नड़ की पत्नी को दे दिये जाते है