न मंत्रों का उच्चारण और न ही वैदिक विधि से सात फेरे,सावित्रीबाई फुले व भीमराव अंबेडकर को साक्षी मानकर बंधे परिणय सूत्र में

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तूफान मेल न्यूज, नाहन।

सिरमौर के गिरी पार क्षेत्र के ताल वाला धमोन में दूल्हे-दुल्हन की शादी चर्चा का विषय बन गई है। इन दोनों नव दंपति ने वैदिक परंपरा में एक और नया अध्याय जोड़ते हुए अपने जीवन के आदर्शों को साक्षी मानकर सात फेरे लिए हैं।
नव दंपति ने पंडित के बगैर भारत की प्रथम महिला अध्यापक सावित्रीबाई फुले और संविधान निर्माता भीमराव अंबेडकर की तस्वीर को साक्षी मानकर परिणय सूत्र में बंध गए। इन दोनों ने उन रूढ़ीवादी परंपराओं में सुधार करते हुए समाज के उन प्रवर्तकों को साक्षी माना जिन्होंने आधुनिक समाज में दिशा और दशा सुनिश्चित की है। दुल्हन का मानना है कि एक समय ऐसा था जब महिलाओं को शिक्षा से वंचित रखा जाता था। उन्होंने कहा कि सावित्रीबाई फुले एक ऐसी महान नेत्री थी जिसने तमाम रूढ़िवादी बंधनों को तोड़ते हुए ना केवल महिलाओं को शिक्षा देने की ठानी थी बल्कि खुद एक प्रथम महिला शिक्षा केंद्र की स्थापना भी की थी। उन्होंने कहा कि आज उन्हीं के जगाए अलख में महिलाओ शिक्षा का अधिकार मिला बल्कि पुरुष प्रधान समाज में समानता का अधिकार भी मिला है। उन्होंने कहा कि महिलाओं के लिए इससे बड़ा वैदिक अलंकरण कोई हो नहीं सकता।
वही दूल्हा का मानना है कि समाज के उपेक्षित वर्ग को संविधान में समानता का दर्जा देकर बाबा भीमराव अंबेडकर ने जो न्याय हमें दिलाया है उनसे बड़ा साक्षी और आदर्श कोई नहीं हो सकता। नव दंपति के द्वारा लिए गए इस फैसले को लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं में बड़ी चर्चा भी चल रही है। बड़ी बात तो यह है कि उनके द्वारा लिए गए इस फैसले को लेकर युवा वर्ग में भी काफी उत्साह देखने को मिल रहा है। दूल्हा सरकारी नौकरी करते हैं यही नहीं वे अपनी शिक्षा और सफलता का श्रेय भी बाबा साहब के आदर्शों को बताते हैं। यह शादी सोशल मीडिया पर भी खूब वायरल हो रही है। युवा वर्ग इसे अपनी भावी पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा का पुंज भी बता रहे हैं।

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