सिरमौर के प्रमुख काली स्थान मंदिर शक्ति पीठ में उमड़ा श्रद्धा का सैलाब


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मंदिर प्रबंधन समिति के बेहतर इंतजामों में इस बार ठहरने की भी थी व्यवस्था

तूफान मेल न्यूज नाहन।
देश और प्रदेश में चल रहे नवरात्रों की अष्टमी का पर्व नाहन के प्रमुख शक्ति पीठ काली स्थान में भी धूमधाम से मनाया गया।
आठवें रूप में अवतरित महागौरी का आशीर्वाद लेने के लिए ना केवल जिला के अन्य मंदिरों में बल्कि नाहन के काली स्थान में अपार श्रद्धा का सैलाब उमड़ा।

सुबह आरती के बाद से ही मंदिर के बाहर श्रद्धालुओं की कतारें लगनी शुरू


सुबह आरती के बाद से ही मंदिर के बाहर श्रद्धालुओं की कतारें लगनी शुरू हो चुकी थी। इस पर्व पर मां काली स्थान मंदिर प्रबंधन समिति के द्वारा श्रद्धालुओं के लिए बेहतर व्यवस्थाएं की गई थी। पहली बार ऐसा हुआ कि प्रबंधन समिति के द्वारा श्रद्धालुओं के लिए ठहरने की भी व्यवस्था की गई। इसके अलावा मंदिर के प्रांगण में जलपान के अलावा बुजुर्ग श्रद्धालुओं के लिए मंदिर प्रबंधन समिति के सदस्यों के द्वारा अलग से माथा टेकने की व्यवस्था भी की गई। मंदिर समिति के सदस्य ऐसे श्रद्धालुओं को खुद पकड़ कर माता के दरबार तक लेकर गए और बाहर उन्हें जलपान आदि करवाकर घर भेजा।
काली स्थान मंदिर प्रबंधन समिति के सचिव देवेंद्र अग्रवाल ने जानकारी देते हुए बताया कि नवरात्रों के पहले दिन से ही मां काली स्थान मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा। उन्होंने बताया कि मंदिर में चौपाल से आए वेदाचार्य पंडित सुनील कुमार व उनके साथियों के द्वारा मां भगवती की कथा लगातार की जा रही है। उन्होंने बताया कि 5 अप्रैल को चौदस के दिन मंदिर के प्रांगण में विशाल भंडारे का आयोजन किया जाएगा। देवेंद्र अग्रवाल ने समिति के अध्यक्ष किशोरी नाथ वरिष्ठ उपाध्यक्ष योगेश गुप्ता दुर्गेश अमर सिंह ठाकुर सुखचैन ठाकुर सोम कुमार वाह तमाम प्रबंध समिति के सदस्यों की ओर से तमाम श्रद्धालुओं से आह्वान करते हुए भंडारे में शरीक होने के लिए अपील भी करी।
बता दें कि मां काली स्थान मंदिर रियासत कालीन मंदिर है। ऐतिहासिक जानकारी के अनुसार यहां पर स्थापित माता की पिंडी नेपाल की राजकुमारी जब विवाह होकर यहां आई थी तो अपने साथ लेकर आई थी। इस शक्तिपीठ में पहले बलि की प्रथा हुआ करती थी मगर अब इस मंदिर में बलि प्रथा के ऊपर पूरी तरह से प्रतिबंध भी है। सांकेतिक बली के रूप में श्रद्धालु यहां जिंदा बकरा मां को समर्पित कर उसे आजाद विचरण के लिए छोड़ देते हैं। यहां यह भी बताना जरूरी है कि इस मंदिर में नाथ समुदाय सेवारत है। बदलते वक्त के साथ प्रकांड वा विद्वान पंडितों के द्वारा मां को हलवा प्रसाद के रूप में भेंट के लिए मना लिया गया था। 18 वीं सदी से अभी तक अब इस मंदिर में नारियलवा हलवे का प्रसाद चढ़ाया जाता है। कई ऐतिहासिक कथाओं और चमत्कारों से भरे इस शक्ति पीठ के कई किस्से कहानियां भी हैं। बताया जाता है मंदिर में रहने वाले गुरु आमनाथ जी और उनके शिष्य नित्य राजा को दर्शन देने और भिक्षा लेने जाया करते थे। बताया जाता है कि 1 दिन गुरु ने महारानी से कुछ आम काअचार देने के लिए कहा इस पर महारानी ने कहा कि यदि आम खाने का इतना ही आपको शौक है तो खुद आम का अचार क्यों नहीं बनाते।
बताते हैं कि इसके बाद गुरु आम नाथ हठकर वहां से बिना भिक्षा लिए लौट गए। मगर जाते-जाते कह गए कि कल अपने आप आम का अचार डाल कर ना आया तो फिर कभी महल में भिक्षा लेने नहीं आऊंगा। यहां यह भी बता दें कि हमारे वेद पुराणों में साधु और सन्यासी को भिक्षा देना पवित्र कार्य माना जाता रहा है।
बताया जाता है कि गुरु आम नाथ ने आम के डंडे तोड़े और उन्होंने अपने शिष्यों का आदेश दिया कि नोणी के बाद की तरफ जहां भी खाली जगह मिले वहां यह आम की डालियां लगा दो और सुबह आम तोड़कर लेकर आओ नहीं तो आश्रम में मत आना।
बताया जाता है कि सुबह जब उनके शिष्य सो कर उठे तो देखा की आन कि वह सारी डंडियां जो लगाई गई थी वह बड़े पेड़ बन कर उन पर आम लगे हुए थे। बताया जाता है कि नोणी के बाग में जोगन वाली आदि जगह पर जितने भी आम के पेड़ पुराने नजर आते हैं वह सब गुरु आम नाथ के आशीर्वाद से उनके शिष्यों के द्वारा लगाए गए थे। यह नहीं चमत्कारों का सिलसिला लगातार जारी रहा। बताते हैं गुरु आम नाथ जब शरीर त्यागने के लिए समाधि लेने लगे तो उनसे उनके शिष्यों ने प्रश्न किया कि गुरुदेव हमें कैसे मालूम चलेगा कि आप महायात्रा पर प्रस्थान कर चुके हैं। इस पर गुरु आम नाथ ने बोला था की यह जो सामने लगा बरगद का पेड़ है जैसे ही इसकी यह लंबी शाखा टूटेगी तो समझ लेना कि मेरे शरीर से दिव्य आत्मा प्रस्थान कर चुकी है। बताया जाता है कि जैसे ही शरीर को त्यागा तो कुछ देर बाद ही बरगद का वह विशाल तना टूट गया था। इस विशाल तने के टूटने के आज भी निशान बाकी है। यह वह बरगद है जहां पर हनुमान जी की मूर्ति भी स्थापित की गई है। और वह लंबा तना फाउंड्री की ओर जाता था।

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