पार्वती नदी में दूसरी रात भी दिखी चमत्कारी रोशनी


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-चर्चा का बाजार गर्म रोशनी कहीं सर्फ मणी तो नहीं

माता पार्वती की कर्ण मणी से पड़ा था मणिकर्ण नाम
तूफान मेल न्यूज़ , कुल्लू-मणिकरण। पार्वती नदी ने दूसरी रात भी चमत्कारी रोशनी नजर आती रही। इस रोशनी को निहारने के लिए लोगों की लंबी कतार लगी रही।

अब चर्चा यह भी है कि पार्वती नदी में कहीं चमकने बाली रोशनी सर्प मणी तो नहीं। अभी तक इस रोशनी की कोई अधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है कि आखिर यह क्या है लेकिन स्थानीय कुछ लोग इसे सर्प मणी कुछ नीलम व कुछ क्रिस्टल स्टोन मान रहे हैं। कुछ लोगों में यह भी चर्चा है कि सल्फर का फबारा फूटने से भी इस तरह की घटना हो सकती है। गौर रहे कि गत शुक्रवार रात को मणिकर्ण में नदी के बीच एक चमत्कारी रोशनी घूमती रही। सैंकड़ों लोग इस रहस्यमयी रोशनी के गवाही बने।
प्रत्यक्षदर्शी खुशी राम उपमन्यु ने बताया कि शुक्रवार रात भी यह रोशनी प्रकट हुई। खुशी राम उपमन्यु ने बताया कि पार्वती नदी के बीचों-बीच में रोशनी चमक रही है। रोशनी से पावती की लहरें उछलती हुई नजर आ रही है और ऐसा महसूस हो रहा है कि यहां जिस स्थान से रोशनी उतपन्न हुई है वहां उथल पुथल हो रही है।
क्या है मणिकर्ण का पुरातन इतिहास
धार्मिक नगरी मणिकर्ण में शिव-पार्वती ने 11 हजार वर्ष क्रीड़ा की। इसलिए इस धरती को शिव-पार्वती की क्रीड़ा स्थली भी कहा जाता है। एक दिन माता पार्वती जब पानी के सरोवर में स्नान कर रही थी तो माता की कान की मणी सरोवर में गिर गई। माता ने मणी की तलाश की पर कहीं भी नहीं मिली। फिर माता ने भगवान शिव को सारी व्यथा सुनाई। शिव भगवान ने सभी अपने गण मणी की तलाश में लगा दिए। लेकिन शिव गण भी मणी तलाशने में असमर्थ रहे। फिर शिव भगवान को आक्रोश आने लगा कि आखिर धरती पर ऐसी कौन सी शक्ति उतपन्न हो गई है जो पार्वती की मणी को छुपाए बैठा है। शिव भगवान तीसरी नेत्र खोलने लगे और सारे तीनों लोक हिलने लगे। तभी सभी देवी-देवता शिव भगवान की शरण पहुंचे और तीसरा नेत्र पूर्ण रूप से न खोलने का आग्रह किया।
शिव भगवान के आंसू से माता नैना हुई उतपन्न
जब शिव भगवान के तीसरे नेत्र से

आंसू टपका तो माता नैना उतपन्न हुई। माता नैना ने अपनी दृष्टि से बताया कि मणी में इतना तेज है कि वह पाताल लोक जाकर पहुंची है। फिर माता नैना मणी की तलाश में पाताल लोक पहुंची और पलाल लोक के स्वामी भगवान शेषनाग को मणी के बारे सारी घटना बताई। भगवान शेषनाग ने बताया कि यहां बहुत सारी मणियां हैं और माता की मणी पहचाननी मुश्किल हो जाएगा। फिर भगवान शेषनाग ने एक फुंकार मारकर सारी मणियां धरती लोक पर माता के चरणों में अर्पित की और अपनी मणी पहचानने की प्रार्थना की। शेषनाग की फुंकार में इतनी शक्ति थी कि मणियों के साथ जो पानी का फुवरा बाहर निकला वह बहुत ही गर्म था। तब माता ने अपनी मणी पहचान कर निकाली और अन्य सभी मणियों को पत्थर बनने का शाप दे दिया ताकि भविष्य में मणियों के लिए लड़ाई का माहौल न बने। बताया जाता है कि तभी से आज तक मणिकर्ण में गर्म पानी के उबलते चश्मे हैं।
108 डिग्री तक उबलता है मणिकर्ण का गर्म पानी
मणिकर्ण में निकलने बाले गर्म पानी के चश्मे 108 डिग्री तापमान में उबलते हैं। स्थानीय मंदिर कमेटी व गुरुद्वारा कमेटी ने यहां स्नान के लिए गर्म व ठंडा पानी मिक्स करके स्नान कुंड बनाए हैं। इस पानी मे स्नान करने से चरम रोग,घुटने के रोग आदि से मुक्ति मिलती है।
दाल-चावल व रोटी भी पकती है मणिकर्ण के गर्म पानी में
मणिकर्ण के गर्म पानी में दाल-चावल व रोटी भी पकती है। कुंड में रोटी डाली जाती है और पकने पर रोटी ऊपर तैरने लगती है। मंदिर व गुरुद्वारा में इसी तरह कुंड में पकाई रोटी व दाल-चावल प्रशाद के रूप में परोसी जाती है।

पार्वती नदी बाली खबर का बॉक्स
क्या कहते हैं उपायुक्त आशुतोष गर्ग , उपायुक्त आशुतोष गर्ग का कहना है कि यह बायोल्यूमिनेसेंस है। यह कुछ अन्य भारतीय नदियों में भी देखा गया है।

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