कुल्लू जिला में फागली उत्सव की धूम, देवमयी हुई घाटी


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-अश्लील गालियों का हो रहा खूब आदान-प्रदान
-बीठ को पकड़ने के लिए भी होती है खूब गहमा-गहमी
-विष्णु भगवान के सम्मान में मनाया जाता है यह अनोखा पर्व
तूफान मेल न्यूज़ ,कुल्लू

फाल्गुन संक्राति का आरंभ होते ही कुल्लू जनपद में फागली उत्सव की धूम पुरातन समय से चली आ रही है। जिला कुल्लू समेत मंडी जिला के सराज में फागली उत्सव की खूब धूम है। यह उत्सव बंजार से लेकर ऊझी घाटी मनाली तक पारंपारिक तरीके से मनाया जाता है और यहां की हर पंचायत की फागली मनाने का तरीका अपना-अपना होता है। उधर, बंजार घाटी के
अधिष्ठाता देवता भगवान विष्णु के स्वर्ग प्रवास लौटने की खुशी में घाटी के विभिन्न गांवों में अवतार समारोह का आयोजन किया जा रहा है।

फोटो:फाइल फोटो

यह उत्सव बंजार के गांव बेहलो, बाहू, चैहणी, देउठा, चेडा, फैराड़ी, शीली, पेखड़ी, चेथर, वीणी, छेत, जिभी, तांदी, भलाग्रां, शाच, मिहार, सुमा, तुंग, लटीपरी, बाहु, मोहनी, बेहला-बलौण, बलागाड़, खावल, चेत्थर, सरची, मंझली आदि कई गावों में फाल्गुन सक्रांति से लेकर करीब 10 दिन तक बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। जहां भगवान विष्णु का या तो मंदिर है या फिर पालकी है। पोष महीने में स्वर्ग लोक की यात्रा पर गए भगवान विष्णु नारायण फाल्गुन
संक्रांति के दिन स्वर्ग पर लौटने की खुशी में इस भव्य अवतार समारोह को मनाया जाता है। राजा इंद्र की सभा से लौटने केे बाद देवता विष्णु भगवान के धरती पर अवतरित होने पर स्वर्ग लोक के वृतांत के साथ-साथ असूरों के साथ हुए यद्ध के बारे में देवता भी प्रजा को अवगत करवातेे हैं। विष्णु भगवान यह वृतांत अपने गुर के माध्यम से उपस्थित लोगों के जनसमूह को बताएंगे। यही नहीं इस समारोह में वर्षभर में होने वाली घटनाओं की भविष्यवाणी भी की जाएगी।

फोटो:फाइल फोटो

देवता यह भविष्यवाणी समारोह के तृतीय दिन के दूसरे पहर में करेंगे। उत्सव में शरीक होने के लिए ग्रामीण दूर-दूर से यहां पहुंच रहे हैं। इस समारोह में शडूली नामक घास से बना चोला, पटटू, धाठू तथा मुंह में लकड़ी के मुखौटे तथा हाथ में करीब तीन फुट लंबा लकड़ी का डंडे को हाथ में लिए पुरूषों की विशेष वेशभूषा में करीब 40 से 50 लोगों को समूह विष्णु भगवान के मंदिरों व गांवों की अश्लील गालियों से परिक्रमा की तथा समूह द्वारा एक मनमोहक नृत्य पेशकर खूब समा बांधा, जिसको देखने के लिए कई लोग एकत्रित हुए। समारोह के अंतिम दिन भगवान विष्णु नारायण के रूप में एक विशेष फूल हरगिज को एक टोकरे में रखा जाता है और जनसमूह के बीच इसे नचा कर टोकरे को लोगों के बीच फैंका जाता है, जिसको हथियाने के लिए लोगों में भारी कमकश होती है।

फोटो:फाइल फोटो

माना जाता है कि इसे प्राप्त करने से विष्णु भगवान का वरदान मिलता है, जिसे घर में सुख समृद्धि बनी रहती है। इस रात्रि हर गांव में भगवान विष्णु के दस अवतारों को गुणगान नाटी के माध्यम से गीत गाकर किया जाता है। इस अवतार समारोह में असुरी शक्तियों पर देवता विजय कर, असत्य पर सत्य तथा अधर्म पर धर्म का प्रतीक माना जाता है। इस दौरान दो माह पूर्व र्स्वग प्रवास पर गए तमाम देवता ढ़ोल नगाड़ो की थाप पर पुनः हरियानों के बीच लौटेगें। इस दौरान जहां फागली मे एक ओर जहां मंडियाला नृत्य उत्सव का विषेश आर्कषण होता है। बीठ उत्सव के दौरान बोदी व नरगिस के फूल को पकड़ने के लिए हारियानों के बीच खूब मारी-मारी होती है। ऐसा माना जाता है कि देवता विष्णु को समर्पित इस बीठ में जो व्यक्ति बोदी के फूल को पकड़ता है उसे देवता द्वारा गुप्त वरदान दिया जाता है।

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क्यों मनाई जाती है फागली

घाटी के लोगों का मानना है कि देवताओं के दो माह तक र्स्वग प्रवास के दौरान
आसुरी शक्तियां बढ़ जाती है जिसे भगाने के लिए फाल्गुन संक्राति के दिन से ही फागली उत्सव मनाया जाता है। इस दौरान हरियानो के साथ देवता भी परिक्रमा में शरीक होते है व वुरी शक्तियों को भगाने के लिए अश्लील गालियां निकाली
जाती है।
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क्या है बीठ का महत्व

नरगिस और ब्रांस के फूलों से तैयार करवाए गए बीठ को एक बड़ी टोकरी में
सजाया जाता है जिसे भगवान का अवतार माना जाता है। दिन भर देवता के रथ के साथ इसे नचाया जाता है बाद दोपहर को हरियानो के झुंड के बीच इसे कारकूनों द्वारा फैंका जाता है। जिसे प्राप्त करने के लिए सभी व्यक्ति पूरी कोशिश
करते है। बीठ को सुख समृद्धि ओर देवता का वरदान माना जाता है।

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