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तूफान मेल न्यूज,कुल्लू। सैंज घाटी का सुप्रसिद्ध पर्यटन स्थल शांघड़ आज देश-दुनिया में प्रसिद्ध हो गया है। लेकिन शांघड़ को पर्यटन की दृष्टि से उभारने में मास्टर गिरधारी लाल भारद्वाज के संघर्ष को भुला नहीं जा सकता है। यह बात नॉर्थ इंडिया पत्रकार एसोसिएशन के राज्य अध्यक्ष एवं प्रेस क्लब कुल्लू के प्रधान धनेश गौतम ने कही।
उन्होंने मास्टर गिरधारी लाल के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा है कि सैंज व बंजार घाटी ने एक दूरदर्शी सोच बाले व्यक्तित्व को खोया है जिसकी क्षति अपूर्णीय है। मास्टर गिरधारी लाल पहले ऐसे व्यक्ति एवं पर्यटन प्रेमी हैं जिन्होंने इस पर्यटन स्थल के प्रचार-प्रसार के लिए दिन-रात एक किए हैं। उनका सपना था कि शांघड़ का पर्यटन एक दिन देश दुनिया में चमके। हालांकि उनका यह सपना उनके जीते जी पूरा भी हुआ लेकिन आज वोह शांघड़ को बहुत कुछ देकर स्वयं इस संसार को अलविदा कह गए हैं। उनके इस योगदान को कभी नहीं भूलना चाहिए और शांघड़ वासियो को उनकी याद में स्मृति बनानी चाहिए। धनेश गौतम ने कहा कि मास्टर गिरधारी लाल उन दिनों शांघड़ के पर्यटन को लेकर चिंतिंत थे जब न तो शांघड़ को सड़क जाती थी और न ही कोई जानता था कि शांघड़ भी कोई सुंदर स्थल है। मास्टर गिरधारी लाल तब शांघड़ से पैदल चलकर सैंज पहुंचते थे और सैंज से वाया बस कुल्लू आकर हर मीडिया के कार्यालय जाकर शांघड़ के सुंदर स्थल को उभारने की अपील करते थे। यही नहीं वे शांघड़ के मैदान की 8 वाई 10 की फोटो कॉपी भी सभी मीडिया के लोगों व अधिकारियों को भेंट करते रहते थे और यहां के सुंदर स्थल की गाथा का व्यख्यान करते रहते थे। वे कहते थे कि मुझे विश्वास है कि एक दिन मेरा शांघड़ देश-दुनिया के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में एक होगा। मुझे फक्र है कि वे मेरी लेखनी से प्रभावित थे और जब भी कुल्लू आते थे तो मेरे कार्यालय जरूर आते थे। एक बार मास्टर जी बोले गोतमा जी किसी न किसी तरीके से शांघड़ तक सड़क पहुंचा दो। आप सरकार के कान में यह बात डाल दो। मुझे विश्वास है आप ही यह काम कर सकते हैं। उन्हें मुझ पर व मेरी लेखनी पर बहुत विश्वास था और शांघड़ के पर्यटन को उभारने की चिंता थी। वे कई बार तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह से भी मिले और मेरे अखबार की वोह कटिंग दिखाते थे जिसमें शांघड़ के बारे लिखा होता था और सड़क की मांग की होती थी। जब तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने सड़क के लिए मंजूरी दी तो मास्टर गिरधारी लाल की खुशी का ठिकाना न था। वे मेरे कार्यालय पहुंचे और एक सुंदर सी टोपी मेरे सिर पर पहना दी साथ ही शांघड़ का फोटो स्मृति के रूप में देकर जोर-जोर से कहते हैं मुबारक हो गौतमा जी,मुबारक हो। वोह मुझे प्यार से गौतमा जी कहते थे। मैं देख रहा था वे खुशी से समाय नहीं जा रहे थे। मानो उन्हें जीवन की कामयाबी मिली हो। जैसे ही शांघड़ सड़क पहुंची तब भी वे बहुत खुश थे और उस दिन भी शांघड़ में भारी भीड़ में मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में हमारा स्वागत करना नहीं भूले। समय बीतता चला गया और शांघड़ देश-दुनिया में प्रसिद्ध हो गया। शांघड़ में बड़े-बड़े होटल,रेस्तरां,होम स्टे आदि की भरमार हो गई और हजारों पर्यटक वहां पहुंच रहे हैं लेकिन मास्टर गिरधारी लाल की कुर्बानी को सब भूल बैठे। वेशक पर्यटन की चौकाचोंध में उनकी कुर्वानी खो सी गई हो लेकिन हमें वोह सब याद है और यही कारण है कि आज समय आ गया है कि मास्टर गिरधारी लाल भारद्वाज की कुर्वानी को सबको याद करवाया जाए।