मुहल्ले के दिन देवधुनों से सराबोर हुई अठारह करडू की सौह


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रघुनाथ के कैंप में हुआ अठारह करोड़ देवी-देवताओं का महामिलन
-भगवान नरसिंह की चनणी में भी देवताओं ने टेके माथे
-रावण का खात्मा करने के लिए की शक्ति ग्रहण
-मुहल्ला में शरीक हुए ढालपुर आए सभी देवी-देवता
-रघुनाथ के रजिस्टर में बाकायदा हुई देवी-देवताओं की एंट्री

नीना गौतम तूफान मेल न्यूज ,कुल्लू । देवसमागम अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव के छठे दिन शुक्रवार को ढालपुर मैदान देवी-देवताओं की ध्वन लहरियों से जहां गुंजायमान हो उठा वहीं, ऐसा प्रतीत हुआ कि एक बार फिर धरती पर देवलोक से सारे देवता उतर आए हों। मुहल्ले के दिन सभी देवी-देवता अपने अस्थाई शिविर से बाहर निकले और ढोल-नगाड़ों की थाप पर भगवान रघुनाथ के कैंप व नरसिंह भगवान की चनणी तक पहुंचे। इस दौरान देवी-देवताओं की रथ यात्रा से ढालपुर मैदान सराबोर रहा। विश्व के सबसे बड़े देव महाकुंभ अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव में ढालपुर मैदान पहुंचे सभी देवी-देवता रघुनाथ जी के अस्थाई कैंप में जाकर हाजरी भरी।

यही नहीं सभी देवी-देवताओं का रघुनाथ जी के रजिस्टर में बाकायदा एंट्री होने के बाद अठारह करोड़ देवी-देवताओं का देव महामिलन भी हुआ। इस देव महामिलन को मुहल्ला क हते हैं । इसके पश्चात देवी-देवताओं के दशहरा पर्व में रघुनाथ के दरबार में शक्ति का आह्वान हुआ। दशहरा पर्व में इस शक्ति आह्वान को विधिवत रूप से किया गया। देवी हिडिंबा माता फूलों का गुच्छा जिसे शेश कहा जाता है मिलने पर ही मुहल्ला पर्व शुरू हुआ। मुहल्ला उत्सव में ही देवी-देवता रघुनाथ जी के रथ पर हाजिरी भरी लेकिन सबसे पहले हडिंबा देवी का नाम दर्ज होता है। देवी-देवता राजा की चानणी के पास भी हाजरी देते हैैं। देवी-देवताओं से लिया गया शेश राज गद्दी पर बिठाए गए तथा राजा अपनी राजगद्दी को छोडक़र साधारण कुर्सी पर बैठे तत्पश्चात ही शक्ति का आह्वान हुआ।

परंपरा के अनुसार शक्ति रूपी ब्राह्मण रघुनाथ जी के समक्ष शेर की सवारी में नंगी तलवार से नाचते हुए अढ़ाई फेरे लगाई। इस दिन लंका पर विजय के लिए शक्ति से रक्षा की अपील की जाती है। कुल्लू दशहरा पर्व अनूठी परंपरा का संगम है। राजा की चनणी के पास दिन भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा तो वहीं शाम के समय बारी-बारी से आए देवी-देवता अलग ही नजारा पेश कर रहे थे। वहीं देवी-देवताओं ने एक-दूसरे के साथ भव्य मिलन भी किया। इसके अलावा देर रात को रघुनाथ भगवान के मंदिर में भी देव आयोजन हुआ।

वहीं, दशहरा उत्सव के छठे दिन भी धूमधाम बड़ी राजा जलेब संपन्न हुई। इस दौरान 10 देवी-देवताओं ने जलेब में भाग लिया। इसी के साथ राजा की जलेब समाप्त हो गई। शेष विश्व में दशहरा पर्व समाप्त होता है तथा कुल्लू में शुरू होता है। इसके पीछे धारणा यह है कि रावण पूर्णिमा के दिन मारा गया था, इसलिए कुल्लू का दशहरा पर्व पूर्णिमा से सात दिन पहले शुरू होता है तथा सातवें दिन लंका दहन में रावण को परंपरा अनुसार भेदा जाता है।

बहरहाल, छठे दिन कुल्लू के समस्त देवी-देवता रावण का सफाया करने के लिए मुहल्ला में एकत्र हुए और शक्ति का आह्वान करके सातवें दिन लंका पर चढ़ाई करेगें।

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