अंतर्राष्ट्रीय कुल्लू दशहरे की शान सैंज घाटी के देवता बनशीरा


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भूत-पिशाच से परेशान महिला-पुरुष को ठीक करते हैं वनों के राजा वनशीरा: पुजारी करतार कौशल
तूफान मेल न्यूज,कुल्लू । कुल्लू घाटी की देव संस्कृति एक दिलचस्प पौराणिक कथा से पैदा हुई है। यह माना जाता है कि मलाना गांव के शक्तिशाली देवता, जमलू ने एक बार चंद्र्खेनी दर्रे से गुजरते हुए देवताओं की टोकरी वहां पर खोल दी और तेज़ हवाओं ने देवताओं को अपने वर्तमान स्थान तक फैला दिया, जिससे कुल्लू को देवताओं की घाटी के रूप में जाने जाना लगा। देवभूमि कुल्लू के देवी-देवताओं की परंपरा अनूठी, अद्भुत और विभिन्न है। देवी-देवताओं के अलग-अलग रूप हैं। देवी माताओं का कहीं काली रूप कहीं कन्या रूप है।

देवताओं के भी अलग-अलग रूप हैं। भूत-प्रेतों का खात्मा करने वाले अधिकतर छोटे देवी-देवता हैं। कई छोटे देवता के वनों के राजा के नाम से जाने जाते हैं। यहां वन के राजा के नाम से विख्यात बनशीरा देवता के इतिहास पर चर्चा कर रहे हैं, जिनकी पूजा-अर्चना देवभूमि कुल्लू के साथ- प्रदेश में कई जगह पर होती है।

यह देवता देवभूमि कुल्लू की सैंज घाटी के गांव कनौन में चांदी के सुंदर रथ में विराजमान है। देवता की खासियत है कि किसी को बिना वजह प्रताडि़त करना, चोरी करना, जमीन जायदाद के झगड़े, झूठे आरोप लगाता है तो देवता बनशीरा ऐसे व्यक्तियों पर राक्षस प्रवृत्ति से पेश आता है।

यदि ऐसी स्थिति में किसी ने अपना गुनाह कबूल किया तो उसे क्षमा करते हैं। भूत-पिशाच से प्रभावित महिला-पुरुष को देव शक्ति से इलाज कर स्वस्थ करते हैं। दशहरे में इनकी पूजा-अर्चना हो रही है।

क्या कहता है देव समाज

देवता के पुजारी करतार कौशल गूर देवराज , प्रीतम सिंह व कारदार प्रेम सिंह ने बताया कि वनशीरा देवता जंगलों का राजा है। देवता भूत-प्रेतों और बुरी आत्माओं का विनाश करता है। बुरी आत्माओं से प्रभावित कई लोगों देवता के दर पहुंचते हैं, जो ठीक हो जाते हैं। क्षेत्र में कोई भी कारज हो तो सबसे पहले बनशीरा देवता का मान किया जाता है।

भूत-प्रेतों को भगाते हैं देवता

सैंज घाटी के कनौन की ऊंची चोटी पुखरी नामक स्थान पर देवता का मूल स्थान है। यहां मन्नत के तौर पर चढ़ाया गया सैकड़ों टन लोहा व त्रिशूल इस बात का गवाह है कि चोरी, सच-झूठ और भूतप्रेत व बुरी आत्माओं से छुटकारा पाने के लिए जनमानस देवता को पुराना लोहा, पुरानी बंदूकें, त्रिशूल चढ़ाते हैं। मान्यता है कि उक्त वस्तुओं को चढ़ाने से देवता बनशीरा खुश होते हैं। देवता चिम्मू और देवदार के पेड़ में वास करते हैं। भूतों के भगाने के साथ ही साथ देवता जंगलों के रक्षक भी हैं।

शिविर में भगाई जा रही हैं बुरी आत्माएं

अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव में विराजमान हुए बनशीरा देवता के दर श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है। भूत-प्रेत, पशाच व अन्य बुरी शक्तियों का देव शक्ति से खात्मा किया जा रहा है। सन 1972 से देवता कुल्लू दशहरा में आते हैं और कुल्लू में पुराने स्टेट बैंक के समीप कुल्लू दशहरा में बैठते हैं और सात दिनों तक देव कार्यों को विधि विधान अनुसार निभाते हैं।

ब्रह्मा ने सौंपा है वनों की रक्षा का जिम्मा

वनों की रक्षा का जिम्मा ब्रह्मर्षि ने देवता बनशीरा को सौंपा है। दंत कथा के अनुसार जब पृथ्वी लोक से देवता धरती पर आए तो पर्वतों व जंगलों में तपस्या भक्ति व सिद्धि क रने की बात आई तो सर्वप्रथम अठारह करडू ने देवता बनशीरा से अनुमति लेकर जंगलों व पर्वतों पर तपस्या की थी। इस देवता को भीम स्वरूप व हनुमान योद्धा से भी जाना जाता है।

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