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तूफान मेल न्यूज ,कुल्लू । सर्वोच्चतम (सुप्रीम कोर्ट) न्यायलय के मुख्य न्यायाधीश संजय करोल ने देव श्रीबड़ा छमाहूं का संपूर्ण इतिहास जाना। वे यहां दशहरा उत्सव में देव श्रीबड़ा छमाहूं के शिविर में पहुंचे और शीश नवाजा। इसके बाद वे आराम से 30 मिनट तक वहां बैठे और देवता का इतिहास जाना। उन्होंने पुजारी धनेश गौतम से पूछा कि देव बड़ा छमाहूं को सृष्टि का रचयिता कहा जाता है इसके पीछे क्या इतिहास है।
पुजारी धनेश गौतम ने बताया कि देव श्रीबड़ा छमाहूं सृष्टि के रचयिता है। इसके पीछे इतिहास यह है कि जब ब्रह्मा,विष्णु,महेश को सृष्टि की पुनः रचना करनी थी तो उन्हें सबसे पहले शक्ति को प्रकट किया और उसके बाद आदी को प्रकट किया। तभी सृष्टि की रचना संभव हो पाई। इस तरह पांच देवों ने मिलकर महाप्रलय के बाद जब अंधकार समुद्र में डूबी सृष्टि की पुनः रचना की तो अंधकार समुद्र में सृष्टि के रहने से जो ऊर्जा उतपन्न हुई थी वह नाग की भांति तेज वेग में निरंतर आगे बढ़ रही थी और सृष्टि को फिर से अपने आगोश में ले रही थी।
तभी ब्रह्मा,विष्णु,महेश ने इस अद्भुत शक्ति को पूछा कि तुम कौन सी शक्ति हो तो उसने कहा मैं शेष हूं और बह्मा,विष्णु,महेश ने तथास्तु कह कर उस शक्ति को अपने में समाहित किया। इस तरह यह ब्रह्मा,विष्णु,महेश का अलग स्वरूप छमाहूं में तबदील हो गया। अर्थात छह देवों की सामूहिक शक्ति बाला देव। फिर मुख्य न्यायाधीश ने पूछा कि रघुनाथ की मूर्ति सबसे पहले कहां लाई गई थी। तो पुजारी धनेश गौतम ने पूरा इतिहास बताया कि किस घटना के तहत रघुनाथ की मूर्ति 1651 में सबसे पहले मकराहड़ स्थान पर आई थी और किस तरह मणिकर्ण,नग्गर ठाहुया होते हुए सुल्तानपुर पहुंची।
फिर मुख्य न्यायाधीश ने पूछा कि वर्तमान में कुल्लू अर्थात रूपी का राजा कौन तो धनेश गौतम ने पूरी घटना बताते हुए बताया कि कुल्लू का राजा रघुनाथ जी ही हैं और जो राजा थे वोह 1662 ईस्वी के बाद राजा के छड़ी बरदार है। ततपश्चात देवता ने उन्हें आशीर्वाद दिया।