इंसान की भांति देवताओं की भी आपस में बंधी है रिश्तों की डोर


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देवताओं के दादा व दादी भी मौजूद है कुल्लू की देवप्रथा में

शिव भगवान का पूरा परिवार है अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव में मौजूद

नीना गौतम तूफान मेल न्यूज, कुल्लू

इंसान ही नहीं बल्कि देवी-देवताओं की भी आपस में रिश्तों की डोर बंधी होती है जिसका उदाहरण अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा में बखूवी देखने को मिलता है।

माँ हिडिंबा मनाली ( दादी)

कतरूसी नारायण दड़का लग वैली

देवमहाकुंभ अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव में आज भी देव संस्कृति के बूते पूरी दुनिया में अपनी अनूठी मिसाल पेश करने वाले कुल्लू में देवताओं की रिश्तेदारी प्रथा आज तक कायम है। जिसका आज तक देवी-देवता बखूवी निर्वाह कर रहे हैं। लिहाजा, आम आदमी की तरह देवता भी आपस में रिश्ते की डोर से बंधे हुए हैं।

शिव परीवार
बिजली महादेव, माता पार्वती, कार्तिक स्वामी, गणेश

लगघाटी के कतरूसी नारायण को जहां देवताओं के दादा की उपमा दी गई है, वहीं, राक्षसी प्रवृति को त्याग कर देवी बनी मनाली की हिडिंबा को देवताओं की दादी कहा जाता है।

माता पार्वती,गणेश

बाह्य सराज के टकरासी नारायण का खुड़ीजल देवता के साथ मामा-भांजे के संबंध से भी हर कोई वाकिफ है। खुड़ीजल देवता के कारदार का कहना है कि जिले में जब भी कोई धार्मिक आयोजन होते हैं तो यह देवता भी रिश्तेदारी प्रथा को आपसी मिलन के जरिए निभाते हैं। यही नहीं, अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव में शिव भगवान का पूरा परिवार एक स्थान पर मौजूद होता है, जिसमें खराहल घाटी का आराध्य देव बिजली महादेव, चौंग की माता पार्वती, ऊझी घाटी के घुड़दौड़ का गणेश व उनके भाई मनाली से कार्तिक स्वामी के रथ साथ-साथ हैं।

लोग शिवजी से मिन्नतें मांगने के लिए इन सभी देवताओं के दर्शन करते हैं। देवता गणेश के कारदार कहते हैं कि शिवजी का पूरा परिवार हर साल एक ही स्थान पर रहते हैं और पूजा का विधि-विधान भी इनके पास एक ही तरह का है। हालांकि देवताओं के दादा कतरूसी नारायण दशहरा उत्सव में शरीक नहीं होते हैं लेकिन देवताओं की दादी का दशहरा में अपना महत्वपूर्ण स्थान है। उन्हीं के आगमन से ही दशहरा की देव परंपराओं का आगाज माना जाता है। बाकायदा इसके लिए रघुनाथ जी के छड़ीबरदार को उन्हें सम्मानपूर्वक लाने के लिए रामशिला तक जाना पड़ता है।

शिवजी के कोप भाजन के कारण धूप के समय न निकलने वाली भेखली की माता जगरनाथी का भी सम्मान किया जाता है। तभी तो रथयात्रा सूर्यअस्त के बाद निकाली जाती है। कुल्लू घाटी के चप्पे-चप्पे में देवताओं का वास माना जाता है। देवता श्रृंगा ऋषि को राजा दशरथ के पुत्रेष्टि यज्ञ करवाने का गौरव है। बालू नाग लक्ष्मणावतार माने जाते हैं। महर्षि वेदब्यास में जहां विश्व के सबसे प्राचीनतम वेद ऋग्वेद की ऋचाओं को संकलित किया। देवताओं की धर्म संसद भी जगतीपट्ट में है। जब भी देवी-देवताओं या आम समाज के कोई निर्णय होते हैं तो उनका सर्वमान्य फैसला यहीं से होता है। मलाणा में देवता जमदग्नि ऋषि स्थित है, जिनकी विश्व में अपनी तरह की अदालत लगती है। ये लोग आज भी इसका निर्वाह कर रहे हैं।

मुक्सर कहें तो कुल्लू की देव प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है। यहां यक्ष, गंधर्व, किन्नर सहित विभिन्न देवताओं के देव रथ हैं। जो आपस में किसी न किसी तरह से जुड़े हैं, जिसे देव समाज ने रिश्तेदारी प्रथा से जोड़ा है। प्रदेश के लोक साहित्य के प्रसिद्ध साहित्यकार मौलू राम ठाकुर का मानना है कि देवताओं की रिश्तेदारी प्रथा को नकारा नहीं जा सकता, विभिन्न मेलों-त्योहारों पर इसकी झांकी दृष्टिगोचर होती है।

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