सामाजिक सरोकारों को निभाने में नहीं था कोई सानी
तूफान मेल न्यूज,बिलासपुर।
जिला बिलासपुर की महान विभूति, पत्रकारिता जगत के सच्चे साधक, जो आमजन की
आवाज को पत्र-पृष्ठों तक उचित स्थान देकर अपनी अनूठी पहचान बनाने वाले
समाजसेवक, कवि, लेखक, साहित्यकार होने के नाते एक दयालु हृदय के मालिक
परम सम्माननीय स्वर्गीय शब्बीर कुरैशी एक ऐसी विभूति रहे जिन्हें स्मरण
करते ही परोपकार और समाजसेवा स्वतः ही उद्धेलित हो जाती है। 17 जुलाई को
उनकी पुण्यतिथि को लेकर उनसे जुड़े शागिर्द और मित्रगण उनके परिवार के
सहयोग से इस दिन को मनाकर उस विभूति को याद करते हैं। दीन दुखियों की मदद
के लिए सदैव तैयार रहते स्वर्गीय शब्बीर कुरैशी का जन्म 15 दिसम्बर सन
1944 ई0 को पुराने बिलासपुर टाउन में हुआ, इनके पिता वजीर दीन बहुत ही
विनम्र, नेक दिल इन्सान रहे है जो पेशे से मिस्त्री का काम करते थे और
माता मुमताज सफल गृहिणी थी। जिन्होंने अपनी सभी सन्तानों को अच्छे
संस्कार देकर पालन पोषण किया। सभी भाई बहनों ने और आगे उनकी सन्तानों ने
भी अपनी मेहनत और कर्मठता के बल पर विभिन्न क्षेत्रों में कामयाबी हासिल
की। मृदु स्वभावी और परहितकारी प्रवृत्ति के मालिक शब्बीर कुरैशी
पत्रकारिता के क्षेत्र में और साहित्य सृजन में इन्ही विशिष्ट गुणों के
कारण समाज में हर श्रेणी के लोगों में बहुत लोकप्रिय रहे है। उनका आचार
व्यवहार सभी को बहुत प्रभावित करता था। एक सफल सक्षम पत्रकार होने के
नाते इन्होने गुरु शिष्य परम्परा को भी बखूबी निभाया है, जिसमें इनका
योगदान अविस्मरणीय रहेगा। साहित्य सृजन में इनकी कविताओं में सामाजिक
कुरीतियों के प्रति जागरुकता का स्वर और मानवता वादी दृष्टिकोण पाया गया
है। इन्होने अपनी रचनायें हिन्दी भाषा के साथ-साथ बिलासपुर की कहलूरी
पहाड़ी भाषा में रची। कविताओं के साथ दिलचस्प जुमले और प्रेरणादायी,
संदेशात्मक, मुहावरे लिखे जिनकी अमिट छाप लोगों के हृदय पर बनी हुई है।
उन्होने काव्य के माध्यम से समाज में नवचेतना, नव ऊर्जा प्रदान की।
स्वर्गीय कुरैशी का पारिवारिक वातावरण भी उनकी सद्भाव प्रवृत्ति को बढ़ाने
वाला मिला। उनकी पत्नी आशा कुरैशी जी स्वतन्त्र विचारों से युक्त,
मिलनसार, हंसमुख, सफलता की ओर अग्रसर जीवन शैली को अपनाने वाली,
सहयोगात्मक नीति में विश्वास, मेहनती कर्मठ शिक्षिका रह चुकी है। अपने
पति के उच्च विचारों को आत्मसात करती हुई उनके साथ चलने वाली जागरूक
महिला है। आशा जी बचपन से बहुमुखी प्रतिभा की धनी रही है, लेखनए गीत,
संगीत, नृत्य, नाटक सभी में पारंगत रही है। शादी के बाद अपने पति के
प्रति हित कार्यों के लिए प्रोत्साहन और प्रेरणा बनी रही। कुरैशी जी की
सभी कविताऐं तत्कालीन भाषा अधिकारी डा. अनीता शर्मा के प्रयासों से
स्मृति नामक पुस्तक में प्रकाशित हुई। प्रथम पुण्य तिथि पर उस पुस्तक का
विमोचन तत्कालीन जिलाधीश (देवेश कुमार) के हाथों हुआ। कुरैशी को अपनी
बिलासपुरी कहलूरी भाषा से विशेष लगाव थाए अतः पहाड़ी भाषा प्रेमी (शिक्षा
मन्त्री और सांसद) स्वर्गीय नारायण चंद पराशर जी के प्रोत्साहन पर यह
लगाव और भी प्रगाढ़ होता गया। कुरैशी जी (व्यस्तता के वावजूद) भाषा विभाग
द्वारा आयोजित मासिक कवि सम्मेलनों में निरंतर भाग लेते थे और कविताएं भी
अवश्य लिखा करते थे। यह पहाड़ी भाषा के प्रति उनकी निष्ठा और श्रद्धा
स्नेह ही था। वह पहाड़ी भाषा के वर्चस्व को जीवन्त रखना चाहते थे बनावटी
आवरण से बचाकर। 17 जुलाई सन 2006 को इस महान विभूति का देहावसान हो गया।
मगर पत्रकारिता के क्षेत्र में, साहित्य काव्य के क्षेत्र में जो
उल्लेखनीय कार्य अंकित है, उनका शब्द शब्द अमर है। गरीबों, असहायों, बेबस
लोगों के मसीहा उनके हृदय में एक अमिट यादगार बनकर सदैव जिन्दा रहेंगे।