ईश्वर की भक्ति सदमार्ग कारास्ता दिखाती है:पंडित सुरेश भारद्वाज


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तूफान मेल न्यूज बिलासपुर।

गेहड़वीं के सेरूआ चंगर गांव में चल रही महाशिव पुराण कथा में प्रवचन करते
हुए कथावाचक पंडित सुरेश भारद्वाज ने बताया कि ईश्वर की भक्ति सदमार्ग का
रास्ता दिखाती है इसलिए सभी को इस मार्ग पर चलना चाहिए। भक्ति के मार्ग
पर चलता इतना भी सहज नहीं है जितना कि समझा जाता है। इस दौरान उन्होंने
भक्त प्रहलाद का प्रसंग सुनाया।

उन्होंने कहा कि प्रह्लाद के जीवन की
घटनाएं बताती हैं कि भक्ति मार्ग पर कोई सूरमा ही चल सकता है। प्रह्लाद
को पहाड़ की ऊंची चोटी से गिराया गया, समुद्र में फेंका गया, विष का
प्याला दिया गया, काल कोठरी में बंद भी किया गया लेकिन यह संघर्ष भी उनको
विचलित नहीं कर पाया। भक्त की इस दृढ़ता को देखकर भगवान को नरसिंह अवतार
लेना पड़ा। प्रह्लाद इस संघर्ष में विजय योद्धा बन पाए। जब देव ऋषि नारद
ने उनकी माता को ज्ञान दिया तो प्रह्लाद को भी माता के गर्भ में ही
ब्रह्म ज्ञान प्राप्त हुआ। कहते हैं जब स्त्री गर्भवती होती है तो माता
के समस्त शारीरिक कर्म का व मानसिक विचारों का उसके भ्रुण पर प्रभाव पड़ता
है। बच्चा माता के गर्भ से ही संस्कार लेकर उत्पन्न होता है जैसे
अभिमन्यु ने चक्रव्यूह का भेदन करना माता के गर्भ से ही सीखा। यह बात
विज्ञान सम्मत भी है कि माता के विचारों से ही शिशु का पोषण होता है।
पंडित जी ने होली पर्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि फूलों की होली का अपना
ही महत्व है। होली का आध्यात्मिक अर्थ स्पष्ट करते हुए पंडित सुरेश
भारद्वाज ने कहा कि परमात्मा को समर्पित हो जाना ही होली है, लेकिन यह
तभी संभव है जब जीवन में गुरु का पदार्पण होता है। परमात्मा के प्रकाश
रूप को देख लेने के पश्चात ही प्रेम पैदा होता है और भक्ति का प्रारंभ
होता है। भक्ति प्रगाढ़ होने पर आत्मा परमात्मा से एकाकार हो जाती है,
पूर्णतया उसके रंग में रंग जाती है यही होली की वास्तविक परिभाषा है।
उन्होंने कहा कि आदर्श समाज की स्थापना हेतु प्रत्येक इंसान का पूर्ण रूप
से विकसित होना अति आवश्यक है। व्यक्ति निर्माण ही समाज निर्माण और फिर
समाज निर्माण है विश्व निर्माण का मुख्य हेतु है। भारतवर्ष युगों से समाज
निर्माण विषयक प्रश्नों का समाधान संपूर्ण विश्व को देता रहा है और देता
रहेगा। यह अध्यात्म ही भारतीय संस्कृति का आधार है क्योंकि संपूर्ण विश्व
में सर्वप्रथम और सर्वश्रेष्ठ भारतीय संस्कृति है। अध्यात्म में संपूर्ण
विकास की प्रक्रिया है यही समस्त वेदों का सार है। कथा का समापन भगवान
शिव की आरती और प्रसाद वितरण के साथ हुआ।

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