रहस्यमयी रोशनी को निहारने पहुंच रहे हैं सैंकड़ों लोग

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मणि दर्शन को उमड़ रहा जनसैलाव हर हर महादेव के लग रहे जयकारे
तूफान मेल न्यूज , मणिकर्ण।
धार्मिक नगरी मणिकर्ण में पार्वती नदी में प्रकट हुई रहस्यमयी रोशनी को निहारने के लिए सैंकड़ो लोग वहां पहुंच रहे हैं। अब यह रोशनी धार्मिक आस्था का केंद्र बन गई है।

लोगों ने इसे मणि की संज्ञा दे दी है और मणि दर्शन के लिए जनसैलाब उमड़ रहा है। सैंकड़ों की संख्या में भक्त यहां पहुंच रहे हैं और हर- हर महादेव जय कारे से मणिकर्ण गूंज रहा है। चौथे दिन इस रहस्यमयी रोशनी ने तीन बार दर्शन दिए।

गौर रहे कि मणिकर्ण में पार्वती नदी में एक रहस्यमयी रोशनी प्रकट हो रही है और बहुत सारे लोगों व विद्वानों का इस रोशनी के बारे अलग-अलग मत है। कुछ लोग इसे सल्फर का गुबार मान रहे तो कुछ का कहना है कि यह नीलम भी हो सकता है। लेकिन अब श्रद्धालु इसे माता पार्वती की कर्ण मणि मान रहे हैं।

सनद रहे कि धार्मिक नगरी मणिकर्ण में शिव-पार्वती ने 11 हजार वर्ष क्रीड़ा की। इसलिए इस धरती को शिव-पार्वती की क्रीड़ा स्थली भी कहा जाता है। एक दिन माता पार्वती जब पानी के सरोवर में स्नान कर रही थी तो माता की कान की मणी सरोवर में गिर गई। माता ने मणी की तलाश की पर कहीं भी नहीं मिली। फिर माता ने भगवान शिव को सारी व्यथा सुनाई। शिव भगवान ने सभी अपने गण मणी की तलाश में लगा दिए। लेकिन शिव गण भी मणी तलाशने में असमर्थ रहे। फिर शिव भगवान को आक्रोश आने लगा कि आखिर धरती पर ऐसी कौन सी शक्ति उतपन्न हो गई है जो पार्वती की मणी को छुपाए बैठा है। शिव भगवान तीसरी नेत्र खोलने लगे और सारे तीनों लोक हिलने लगे। तभी सभी देवी-देवता शिव भगवान की शरण पहुंचे और तीसरा नेत्र पूर्ण रूप से न खोलने का आग्रह किया। जब शिव भगवान के तीसरे नेत्र से आंसू टपका तो माता नैना उतपन्न हुई। माता नैना ने अपनी दृष्टि से बताया कि मणी में इतना तेज है कि वह पाताल लोक जाकर पहुंची है। फिर माता नैना मणी की तलाश में पाताल लोक पहुंची और पलाल लोक के स्वामी भगवान शेषनाग को मणी के बारे सारी घटना बताई। भगवान शेषनाग ने बताया कि यहां बहुत सारी मणियां हैं और माता की मणी पहचाननी मुश्किल हो जाएगा। फिर भगवान शेषनाग ने एक फुंकार मारकर सारी मणियां धरती लोक पर माता के चरणों में अर्पित की और अपनी मणी पहचानने की प्रार्थना की। शेषनाग की फुंकार में इतनी शक्ति थी कि मणियों के साथ जो पानी का फुवरा बाहर निकला वह बहुत ही गर्म था। तब माता ने अपनी मणी पहचान कर निकाली और अन्य सभी मणियों को पत्थर बनने का शाप दे दिया ताकि भविष्य में मणियों के लिए लड़ाई का माहौल न बने। बताया जाता है कि तभी से आज तक मणिकर्ण में

गर्म पानी के उबलते चश्मे है।
मणिकर्ण में निकलने बाले गर्म पानी के चश्मे 108 डिग्री तापमान में उबलते हैं। स्थानीय मंदिर कमेटी व गुरुद्वारा कमेटी ने यहां स्नान के लिए गर्म व ठंडा पानी मिक्स करके स्नान कुंड बनाए हैं। इस पानी मे स्नान करने से चरम रोग,घुटने के रोग आदि से मुक्ति मिलती है।
मणिकर्ण के गर्म पानी में
मणिकर्ण के गर्म पानी में दाल-चावल व रोटी भी पकती है। कुंड में रोटी डाली जाती है और पकने पर रोटी ऊपर तैरने लगती है। मंदिर व गुरुद्वारा में इसी तरह कुंड में पकाई रोटी व दाल-चावल प्रशाद के रूप में परोसी जाती है।

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