हिम संस्कृति शोध संस्थान में डॉ. यज्ञदत्त शर्मा अध्यक्ष और हितेन्द्र शर्मा उपाध्यक्ष नियुक्त टांकरी लिपि के संरक्षण, फ़ॉन्ट निर्माण और वैश्विक मंच पर प्रस्तुति की दिशा में तेज़ी से बढ़ते कदम

Published On:

 कुल्लू ; हिम संस्कृति शोध संस्थान में डॉ. यज्ञदत्त शर्मा अध्यक्ष और हितेन्द्र शर्मा उपाध्यक्ष नियुक्त, टांकरी लिपि के संरक्षण, फ़ॉन्ट निर्माण और वैश्विक मंच पर प्रस्तुति की दिशा में तेज़ी से बढ़ते कदम

हिम संस्कृति शोध संस्थान (पंजीकृत) ने हाल ही में अपनी नई कार्यकारिणी की घोषणा करते हुए संस्था को नई दिशा और ऊर्जा प्रदान की है। संस्था की बैठक में सर्वसम्मति से डॉ. यज्ञदत्त शर्मा को अध्यक्ष और हितेन्द्र शर्मा को उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया।

साथ ही सुनीता कुमारी को सचिव और देव वर्मा को सह-सचिव का दायित्व सौंपा गया है। यह नियुक्तियाँ संस्थान की भावी योजनाओं और सांस्कृतिक अभियानों के बेहतर क्रियान्वयन के उद्देश्य से की गई हैं।
संस्थान हिमाचल प्रदेश की पारंपरिक लोकसंस्कृति, कलाओं, भाषाओं और विशेष रूप से लुप्तप्राय टांकरी लिपि के संरक्षण और प्रचार-प्रसार हेतु विगत वर्षों से निरंतर कार्यरत है।

टांकरी लिपि, जो हिमाचल की प्राचीन प्रशासनिक और साहित्यिक धरोहर रही है, वर्तमान में जनस्मृति से लगभग विलुप्त हो चुकी है। संस्थान ने इसे पुनर्जीवित करने के लिए प्रशिक्षण शिविरों, संवाद सत्रों और शैक्षिक कार्यक्रमों की शृंखला प्रारंभ की है, जिनमें युवाओं, विद्यार्थियों और शोधार्थियों की भागीदारी बढ़ती जा रही है।

टांकरी लिपि को आधुनिक तकनीकी मंच पर स्थापित करने के लिए संस्थान ने एक डिजिटल फ़ॉन्ट के निर्माण की दिशा में कार्य प्रारंभ किया है। यह पहल न केवल इस लिपि को कंप्यूटर, मोबाइल और डिजिटल मीडिया पर प्रयोग के योग्य बनाएगी, बल्कि इसे वैश्विक सांस्कृतिक मानचित्र पर भी प्रतिष्ठित करेगी। डिजिटल लिप्यंतरण की यह प्रक्रिया शिक्षा, प्रशासन, अभिलेखागार और साहित्यिक लेखन जैसे क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण बदलाव लाएगी।

संस्थान के नव-नियुक्त अध्यक्ष डॉ. यज्ञदत्त शर्मा संस्कृत साहित्य, भारतीय ज्ञान परंपरा और लोकसंस्कृति के अध्येता हैं। वे केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं और संस्कृति शोध के क्षेत्र में उनका योगदान उल्लेखनीय रहा है।

उपाध्यक्ष हितेन्द्र शर्मा एक सशक्त साहित्यकार, कवि और स्तंभकार हैं, जो तकनीकी दक्षता के साथ रचनात्मकता को जोड़ने की क्षमता रखते हैं। उनके नेतृत्व में संस्था को तकनीकी नवाचार और युवा सहभागिता की नई दिशा मिलने की संभावना है।

संस्थान निकट भविष्य में राज्य स्तरीय टांकरी संगोष्ठी, डिजिटल प्रशिक्षण मंच, हिमाचली भाषाओं की शब्दावली संकलन योजना और ग्रामीण संस्कृति के दस्तावेजीकरण जैसे महत्त्वपूर्ण प्रकल्पों को प्रारंभ करने जा रहा है। इसके लिए विभिन्न विश्वविद्यालयों, सांस्कृतिक संगठनों और सरकारी निकायों से समन्वय की प्रक्रिया आरंभ हो चुकी है।

हिम संस्कृति शोध संस्थान का यह नवगठित नेतृत्व प्रदेश में सांस्कृतिक चेतना के नवजागरण और पीढ़ियों के मध्य संवाद की पुनर्स्थापना की दिशा में एक प्रभावशाली प्रयास माना जा रहा है। संस्थान का स्पष्ट मानना है कि यदि समाज अपनी सांस्कृतिक जड़ों को संरक्षित नहीं करता, तो उसकी पहचान का भविष्य भी संकट में पड़ सकता है। इसी दृष्टिकोण से संस्थान ने शोध, प्रशिक्षण और संवाद की प्रक्रिया को जन-जन तक पहुँचाने का संकल्प लिया है।