बाह्य सिराज क्षेत्र की सुहागिन महिलाओं द्वारा बीह माँ पर्व को दी गई श्रद्धापूर्वक विदाई

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कुल्लू.    उमाशंकर दीक्षित दलाश ।  बाह्य सिराज क्षेत्र की सुहागिन महिलाओं द्वारा बीह माँ पर्व को दी गई श्रद्धापूर्वक विदाई

बाह्य सिराज क्षेत्र में वर्षभर के व्रत पर्वो व तीज त्योहारों को मनाने का खूब प्रचलन है। आनी, निरमंड क्षेत्र में ब्राह्मण बहुल गाँव में महिलाओं ने सोलह दिन वाद सोमवार की संध्या बेला में बीह माँ पर्व को श्रद्धा पूर्वक विदाई दी गई। सुहागिन महिलाओं ने पारम्परिक वेशभूषा में सुसज्जित होकर प्राचीन बावड़ी के पास बीह माँ का विसर्जन किया।

प्राचीन समय से यहां लोगों की तीज त्योहारों के प्रति अगाध श्रद्धा जुडी है। स्थानीय महिलाएं अपनी रीति रिवाजों को अपना कर इन तीज त्योहारों को मनाने के लिए पारम्परिक एवं नवीन परिधानों में आती हैं। वे अपने व्रत पर्व व त्यौहार की इस संस्कृति को निभाने में परम सौभाग्य समझती हैं।

जेठ मास में मनाया जाने वाला बीह माँ के प्राचीन पर्व को मनाने में यहां महिलाओं में विशेष श्रद्धा और आस्था दिखती है। इस दिन क्षेत्र की महिलाओं ने देर शाम को मंगलचरण गीत गाकर प्राचीन जलस्रोत व बावड़ी के किनारे पर्व क विधिपूर्वक विसर्जन किया।उन्होंने सर्वप्रथम दोपहरवाद बीह माँ का पूजन किया, उसके वाद समूह में आकर वे पर्व को विसर्जन करने निकली।

बता दें कि महिलाएं बीह माँ के इस पर्व को जेठ महीने के जेठे रविवार को अपने गृह में विधि विधान से बिठाती हैं। वे नक्काशी किये गए लकड़ी के एक हाथभर तक्खते पर रंग रंगाई करके बीह माँ की स्थापना करती हैं। महिलाएं टीका, फूल, चावल, धूप, दीप से पूजन करती हैं तथा जौ के आटे से बना प्रसाद चढ़ाती है।

इसी तरह से वे सोलह दिन तक पर्व को पूजती हैं तथा नित्य बीह माँ की कथा को सुनती हैं। सोलहवे दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके इसका विसर्जन करती हैं।
महिलाएं इस व्रत को परिवार की सुख समृद्धि, खुशहाली, संतान सुख, अन्न धन व सम्पति की वृद्धि के लिए करती हैं।

मान्यता है कि बीह माँ को महिलाएं विधि विधात्री के रूप में पूजा करती हैं। वे इसे लक्ष्मी का रूप मानती हैं जो अन्न, धन, सुख समृद्धि, भाग्य वृद्धि का प्रतीक है। महिलायें बीह माँ से ये सब वरदान मांगती है ताकि उसका परिवार सुखी जीवन व्यतीत करे।

इस व्रत, पर्व को मनाने की परम्परा ब्राह्मण बहुल गाँव में अधिक प्रचलित है। बाह्य सिराज क्षेत्र आनी के गाँव रिवाड़ी, चपोहल, रौँ, गोहान, थबोली, ठोगी, शमेशा, कराणा, खणी बटाला, ओलवा,शेऊगी, तूणी,बौरी तथा गोथना में मनाया जाता है। निरमंड क्षेत्र के गाँव टिकरी, रैमू, निरमंड, कोयल, बायल,रंदल,सुनैर, धनाह, चेवड़ी, देऊगी,बशला तथा दुराह में उक्त पर्व मनाया गया।