ज़मीन से बेदखली को लेकर आनी में हिमाचल किसान सभा हुई लाल,आनी में निकाली रैली, मुख्यमंत्री को भेजा ज्ञापन

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रिशव शर्मा ,आनी जमीन से बेदखली के खिलाफ सोमवार को हिमाचल किसान सभा की आनी इकाई ने आनी में प्रदर्शन क़िया।हिमाचल किसान सभा के पूर्व प्रदेश सचिव डॉ. ओंकार शाद की अगुवाई में विश्राम गृह से लेकर आनी कस्बे होकर तहसीलदार कार्यालय तक रैली निकाली गई। तहसीलदार कार्यालय के बाहर डॉ. ओंकार शाद और हिमाचल किसान सभा की आनी इकाई के अध्यक्ष प्रताप ठाकुर ने रैली को सम्बोधित किया।

जिसके बाद हिमाचल किसान सभा ने सेब उत्पादक संघ के मार्फ़त तहसीलदार रतनेश्वर शर्मा आनी के माध्यम से मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू को एक ज्ञापन भी भेजा। ज्ञापन में कहा गया कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने बाबू राम बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य टाइटल वाली एसएलपी में भूमि से बेदखली को अवैध, बिना किसी स्पष्ट आदेश के किया गया तथा नेचुरल जस्टिस के सिद्धांतों का उल्लंघन माना है। पिछले 10 वर्षों में डीएफओ कोर्ट द्वारा सार्वजनिक पब्लिक परमिसिस एक्ट के तहत हजारों बेदखली आदेश दिए गए तथा हिमाचल प्रदेश के डिविजनल कमिश्नर और उच्च न्यायालय द्वारा उन्हें बरकरार रखा गया, जिन्हें अब रद्द कर दिया गया है या हिमाचल उच्च न्यायालय को वापस भेज दिया गया है।

किसान सभा के नेताओं का कहना है कि ये बेदखली जारी है तथा राज्य के विभिन्न भागों में कानून के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना तथा उचित सीमांकन किए बिना आवासीय मकानों को सील किया जा रहा है। यहां तक कि उन मकानों को भी नहीं बख्शा जा रहा है जो नौतोड़ पॉलिसी के तहत स्वीकृत भूमि पर बनाए गए हैं।
हिमाचल प्रदेश विधानसभा ने वर्ष 2000 में भूमि राजस्व अधिनियम 1963 में धारा 163ए को शामिल करके संशोधन किया था, जिसके तहत 1,67,339 किसानों ने शपथ पत्र भरकर अतिक्रमित सरकारी भूमि के नियमितीकरण के लिए आवेदन किया था, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि वे अतिक्रमित सरकारी भूमि के मालिक हैं। इस अधिनियम के खिलाफ एक रिट याचिका हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय में लंबित है, जिस पर अभी अंतिम आदेश आना बाकी है,

लेकिन इसके बावजूद भी ऐसे किसानों को पब्लिक परनिसिस एक्ट के तहत कब्ज़े वाली भूमि खाली करने के लिए नोटिस दिए जा रहे हैं। आपदा के कई मामलों में किसानों के पास कोई भूमि नहीं बचती, यहां तक कि घर बनाने के लिए भी नहीं।
किसान सभा ने मांग कि बेकार भूमि या बंजर भूमि को 1927 के वन अधिनियम और 1980 के वन संरक्षण अधिनियम में परिभाषित नहीं किया गया है. इसलिए इसे भारत के संविधान के अधिकार क्षेत्र से बाहर घोषित किया जाए और जब तक ऐसा नहीं किया जाता है, तब तक सभी बेदखलियों को स्थगित रखा जाए।


सभी भूमिहीन और छोटे और सीमांत किसानों और उन लोगों को भी 10 बीघा तक भूमि प्रदान की जा सके जिनकी कृषि भूमि प्राकृतिक आपदा से नष्ट हो गई है. इसके लिए केंद्र सरकार से 1980 के वन संरक्षण अधिनियम में उचित संशोधन करने का अनुरोध किया जाए। किसान नेताओं ने मांग उठाई कि भूमिहीन एवं गरीब किसानों को कम से कम 5 बीघा कृषि भूमि दी जाए और नियमित की जाए।
सभी भूमिहीन व्यक्तियों को सरकार की नीति के अनुसार ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में क्रमशः दो और तीन बिस्वा भूमि प्रदान की जाए और जब तक उन्हें उपयुक्त भूमि आबंटित नहीं की जाती है, तब तक उनके आवास से बेदखल न किया जाए और 2023 की प्राकृतिक आपदा में जिनके घर नष्ट हो गए हैं, उन्हें 7 लाख रुपये प्रदान करने का विशेष पैकेज उन लोगों को भी दिया जाए जिन्होंने गैर-म्यूटेटेड नीतोड़ भूमि पर अपने घर बनाए हैं।
भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 के अनुसार किसानों को उनकी अधिग्रहित भूमि का 4 गुणा मुआवजा दिया जाए।

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