Deprecated: Creation of dynamic property Sassy_Social_Share_Public::$logo_color is deprecated in /home2/tufanj3b/public_html/wp-content/plugins/sassy-social-share/public/class-sassy-social-share-public.php on line 477
तुफान मेल न्यूज, कुल्लू.
देखें वीडियो,,,,,
भाषा संस्कृति विभाग एवं रूपी सराज कला मंच के संयुक्त तत्वावधान में अटल सदन में पारंपरिक लोक एवं होली गीत का आयोजन किया गया। इस आयोजन में जहां लोक गीत गाए गए वहीं वैरागी समुदाय के लोगों ने होली गीत गाकर माहौल को खुशनुमा बनाया।

भाषा अधिकारी प्रोमिला गुलेरिया व मंच के संयोजक दयानंद गौतम ने सभी का स्वागत किया। हिमाचल प्रदेश का कल्लू संभाग अपने धार्मिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए एक विशिष्ट महत्व रखता है। यहां के परंपराओं में होली भी एक विशेष रूप से भगवान रघुनाथ के संदर्भ से जुड़ा हुआ है वैसे तो हिमाचल में होली का दहन से जुड़ा हुआ राज्य स्तरीय उत्सव सुजानपुर में मनाया जाता है परंतु कुल्लू इस महत्व को और भी विशिष्ट करता है जबकि भगवान रघुनाथ के कुल्लू प्राकृतिक मूल रूप में ख्यातिल्लब्ध महान वैश्णव संत बाबा फुहारी ने अपने पौराणिक त्योहारों को मनाने की परंपरा में वही सूत्र स्थापित किए हैं जो अयोध्या में भगवान राम जी के साथ परंपराओं से चलती आ रहे हैं। राजगुरु बाबा फुवारी ने भगवान रघुनाथ के के साथ वैष्णव धर्म की महता और कुल्लू में होली परंपरा को विशेष रूप से महती भूमिका प्रदान की है। 16वीं शताब्दी में भगवान रघुनाथ के कुल्लू”के साथ ही अवध से उनके साथ वैरागियों के चार अखाड़े परमात्मा की होली परंपरा में जुड़े और उन्हीं के नाम से अखाड़ा बाजार का नाम पड़ा। बैरागी भगवान रघुनाथ के ज्ञान अर्जन, पूजा पद्धति, कीर्तन एवं लाठी चलाना जैसे कर्तव्य को पूर्ण करते थे। कालांतर में यह सभी बैरागी गृहस्थी होकर भगवान की इस परंपरा को आज भी पूर्णता निर्वाह करते हैं। भगवान रघुनाथ कल्लू के अधिष्ठाता देवता है, देवभूमि की संपूर्ण धार्मिक देव परंपरा उनके आशीष से पल्लवित, पुष्पित और फलीभूत होती है। होली के निपटने यदि देखे हैं तो वसंत उत्सव या वसंत पंचमी के दिन से ही इस होली की शुरुआत हो जाती है। भगवान रघुनाथ दशहरा की तरह ही अपने सुसज्जित पालकी में ढालपुर आते हैं और पूरा का पूरा दृश्य चित्रकूट में दृश्य अवलोकन होता है। जहां परमात्मा का भारत से मिलन होता है उसी दिन से होली गायन की परंपरा प्रारंभ होती है यह सभी बैरागी अपने डफों डफ की जोड़ियां में होलाष्टक के में बाबा फुहारी के सानिध्य