तुफान मेल न्यूज, शिमला.
राजकीय महाविद्यालय बिलासपुर में पर्यटन शिक्षा विभाग में कार्यरत प्रो पुनीत ने तीर्थन घाटी में टूरिज्म एक्टिविटीज़ के कारण वहाँ रह रहे लोकल कम्युनिटी पर टूरिज्म के प्रभावों को लेकर शोध कार्य पूरा कर लिया है। प्रो. पुनीत यह शोध कार्य पिछले 4-5 वर्षो से हिमाचल प्रदेश विश्वबिद्यालय के पर्यटन शिक्षा विभाग के तत्वधान में Prof.(Dr.) Chander Mohan Parsheera के मार्गदर्शन में कर रहे थे। इस शोध कार्य का मुख्य उद्देश्य तीर्थन घाटी के लोगो पर टूरिज्म गतिविधियों के कारण पड़ रहे सामाजिक और आर्थिक प्रभावों को जानना और तीर्थन घाटी में पर्यटन के सतत विकास की संभावनाओ का पता लगाना था। प्रो पुनीत ने बताया की तीर्थन घाटी हमारे देश में ही नहीं अपितु विदेश में भी अपनी सुंदरता और संस्कृति और पवित्र नदी, “तीर्थन” के लिए जानी जाती है। तीर्थन घाटी में लोगो के आने का मुख्य उद्देश्य यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता, रहन – सहन, स्थानीय त्यौहार, संस्कृति, ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क में ट्रैकिंग, जंगली जानवरो और पक्षियों को देखना तथा मछली पकड़ना है। वहीं घाटी में बढ़ती पर्यटन गतिबिधियो से घाटी के लोगो को अच्छे स्तर के रेज़गार के अवसर नहीं मिल पाए हैं जिसमे पर्यटन शिक्षा की कमी एक प्रमुख कारण है। तीर्थन घाटी में पर्यटन गतिविधियों के चलते बड़े पैमाने पर होमस्टे और होटल बनाये जा रहे हैं, स्थानीय लोगो की आर्थिक स्थिति मज़बूत न होने के कारण बाहरी लोग यहाँ के लोगों से उनकी ज़मीने खरीद कर या फिर लीज़ पर लेकर बड़े पैमाने पर आर्थिक लाभ बना रहे हैं. पर्यटन गतिविधियों में बढ़ोतरी होने के कारण तीर्थन घाटी के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन भी ज्यादा मात्रा में किया जा रहा हैं। प्रदुषण से भी तीर्थन घाटी अब अछूती नहीं हैं, घाटी की पवित्र नदी “तीर्थन” जिस पवित्र नदी के नाम से ये घाटी जानी जाती है, को पर्यटन गतिविधियों के चलते प्रदूषित किया जा रहा है। घाटी पर्यटन के सतत विकास के लिए uncontrolled टूरिज्म एक्टिविटीज को सिमित रखना , प्राकृतिक संसाधनों का दुरूपयोग न होने देना, कमर्शियल इंफ्रास्ट्रक्चर के बनने के लिए नियम बनाना और स्थानीय लोगो को पर्यटन से जुड़ने के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करना तथा बढ़ती पर्यटन गतिविधियों के कारण पवित्र नदी “तीर्थन” को इसके दुष्प्रभावों से बचने की आवश्यकता है।