दुष्टों के संहार के लिए भगवान किसी न किसी रूप में लेते हैं अवतार: पंडित सुरेश भारद्वाज


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तूफान मेल न्यूज ,बिलासपुर।
श्री नयना देवी जी उपमंडल के खरकड़ी में चल रही श्रीमद भागवत कथा के चौथेदिन प्रवचनों की अमृतवर्षा करते हुए प्रसिद्ध कथावाचक पंडित सुरेश भारद्वाज ने कहा कि जब-जब धरती पर अत्याचार बढ़ता है तो दुष्टों के संहार
के लिए भगवान किसी न किसी रूप में अवतार लेते हैं। इस दौरान पंडित जी ने भगवान श्री कृष्ण के जन्म का रोचक प्रसंग सुनाया। उन्होंने कहा कि भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी कहते हैं, क्योंकि यह दिन
भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिवस माना जाता है। इसी तिथि की घनघोर अंधेरी आधी रात को रोहिणी नक्षत्र में मथुरा के कारागार में वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया। यह तिथि उसी शुभ घड़ी की याद दिलाती है। उन्होंने कहा कि द्वापर युग में भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज्य करता था। उसके आततायी पुत्र कंस ने उसे गद्दी से उतार दिया और
स्वयं मथुरा का राजा बन बैठा। कंस की एक बहन देवकी थी, जिसका विवाह वसुदेव नामक यदुवंशी सरदार से हुआ था। एक समय कंस अपनी बहन देवकी को उसकी ससुराल पहुंचाने जा रहा था। रास्ते में आकाशवाणी हुई. हे कंस, जिस देवकी
को तू बड़े प्रेम से ले जा रहा है,उसी के गर्भ में तेरा काल जन्म लेगा।इसी के गर्भ से उत्पन्न आठवां बालक तेरा वध करेगा। यह सुनकर कंस वसुदेव को मारने के लिए उद्धेलित हुआ। तब देवकी ने उससे विनयपूर्वक कहा मेरे गर्भ से जो संतान होगी, उसे मैं तुम्हारे सामने ला दूंगी। बहनोई को मारने से क्या लाभ है। कंस ने देवकी की बात मान ली और मथुरा वापस चला आया। उसने
वसुदेव और देवकी को कारागृह में डाल दिया। वसुदेव.देवकी के एक.एक करके सात बच्चे हुए और सातों को जन्म लेते ही कंस ने मार डाला। अब आठवां बच्चा होने वाला था। कारागार में उन पर कड़े पहरे बैठा दिए गए। उसी समय नंद की
पत्नी यशोदा को भी बच्चा होने वाला था। उन्होंने वसुदेव.देवकी के दुखी जीवन को देख आठवें बच्चे की रक्षा का उपाय रचा। जिस समय वसुदेव.देवकी को पुत्र पैदा हुआ, उसी समय संयोग से यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ
जो और कुछ नहीं सिर्फ माया थी। जिस कोठरी में देवकी.वसुदेव कैद थे, उसमें अचानक प्रकाश हुआ और उनके सामने शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किए चतुर्भुज भगवान प्रकट हुए। दोनों भगवान के चरणों में गिर पड़े। तब भगवान ने उनसे
कहा. अब मैं पुनः नवजात शिशु का रूप धारण कर लेता हूं। तुम मुझे इसी समय अपने मित्र नंद के घर वृंदावन में भेज आओ और उनके यहां जो कन्या जन्मी है, उसे लाकर कंस के हवाले कर दो। उसी समय वसुदेव नवजात शिशु.रूप
श्रीकृष्ण को सूप में रखकर कारागृह से निकल पड़े और अथाह यमुना को पार कर नंदजी के घर पहुंचे। वहां उन्होंने नवजात शिशु को यशोदा के साथ सुला दिया और कन्या को लेकर मथुरा आ गए। अब कंस को सूचना मिली कि वसुदेव.देवकी को
बच्चा पैदा हुआ है। उसने बंदीगृह में जाकर देवकी के हाथ से नवजात कन्या को छीनकर पृथ्वी पर पटक देना चाहा, परंतु वह कन्या आकाश में उड़ गई और वहां से कहा. श्अरे मूर्खए मुझे मारने से क्या होगा। तुझे मारने वाला तो वृंदावन में जा पहुंचा है। वह जल्द ही तुझे तेरे पापों का दंड देगा। इस अवसर पर भगवान श्रीकृश्ण जन्म को बहुत ही अलौलिक तरीके से प्रस्तुत किया
गया तथा सुंदर भजनों से पंडाल झूम उठा। कथा समापन पर प्रसाद वितरण भी किया गया।

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